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________________ ज्ञानसागर का संस्कृत-कवियों में स्थान 'लोदितम्' वाक्य बनता है । स्मरण रहे कि महाकवि का पारिवारिक नाम भूरामल ही था । ४३३ इस प्रकार साहित्य प्रोर दर्शन, भावपक्ष मोर कलापक्ष मौर प्राचीन शैली पौर आधुनिक शैली का प्रभुत समन्वय करने वाले श्री ज्ञानसागर निश्चित हो संस्कृत-साहित्य के श्रेष्ठ कवियों में स्थान पाने के अधिकारी हैं। साहित्यकार किसी धर्म या जाति विशेष का प्रतिनिधित्व करने मात्र से साहित्य समाज में उचित स्थान पाने के प्रयोग्य नहीं हो जाता। यदि सभी साहित्यिकों को सदृष्टि से देखा जाय धर्मनिरपेक्ष एवं जातिनिरपेक्ष होकर उनकी समालोचना की जाय तो सनातन धर्मियों द्वारा उपेक्षित जैन एवं बौद्ध कवि प्रथवा जैनधर्मावलम्बियों प्रोर बौद्धधर्मावलम्बियों द्वारा उपेक्षित सनातनधर्मावजम्बी कवि भी साहित्यसमाज में योग्य स्थान पाने के अधिकारी हो सकते हैं । इस दृष्टि से ग्रस्मदालोच्य महाकवि ज्ञानसागर कालिदास, प्रश्वघोष, भारवि, माघ, हर्ष इत्यादि विख्यात महाकवियों की शृङ्खला के कवि हैं, मोर प्राधुनिक संस्कृत कवियों में तो उनका उच्च स्थान होना ही चाहिए । (ख) कवि श्रीज्ञानसागर के संस्कृत काव्यग्रन्थों का संस्कृत-साहित्य में स्थान स्पष्ट है कि जो कवि संस्कृत-साहित्य में श्रेष्ठ कवियों में स्थान पाने का प्रधिकारी है, उसकी काव्यकृतियाँ भी संस्कृत-साहित्य में उच्च स्थान पाने की fontfront श्रवश्य होंगी। कवि ज्ञानसागर ने जयोदय, सुदर्शनोदय, श्रीसमुद्र दत्तचरित्र- ये चार महाकाव्य श्रोर दयोदय नामक एक चम्पू काव्य की रचना की है । उनके इन पांचों काव्यग्रन्थों का संस्कृत-साहित्य में जो स्थान हो सकता है, वह इस प्रकार है (क) जयोदय -- यह श्री ज्ञानसागर विरचित २८ सर्गों का महाकाव्य है । इसका माबोपात परिशीलन करने से ज्ञात होता है कि वह बृहत्त्रयी की परम्परा में भाने के योग्य है। इस काव्य में शृङ्गार रस रूपिणी यमुना और वीररसरूपिणी सरस्वती का शान्तरखरूपिणी गङ्गा के साथ प्रदद्भुत सङ्गम किया गया है। बृहत्त्रयी की परम्परा में प्रौढ़-संस्कृत भाषा में इस काव्य की रचना हुई है । प्रचलित-प्रप्रचलित विविध छन्दों का प्रतिशय प्रयोग भी इसे बृहत्त्रयी की परम्परा में ले जाता है। इस काव्य में जयकुमार के परिचय, स्वयंवर में दासी द्वारा सुलोचना के समक्ष राजाधों का परिचय देने मिस्सन्देह " नेषधीयचरित" के समकक्ष कर देता है । अनवद्यमति राजानों के एकत्र होने, प्रादि का वर्णन इसे मन्त्री का प्रकीति
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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