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________________ दशम अध्याय उपसंहार ज्ञानसागर का संस्कृत-काव्यों में स्थान प्राचार्य मुनि ज्ञानसागर जी २०वीं शताब्दी के कवि हैं। इनके द्वारा रचित काव्य-ग्रन्थों की समालोचना पहले के प्रध्यायों में की जा चुकी है। अब हमारा कर्तव्य हो जाता है कि सरस्वती की समाराधना तत्पर मुनि श्री ज्ञानसागर का संस्कृत कवियों में स्थान निर्धारित करें। जब-जब महाकवियों के विषय में चर्चा होती है, तब-तब प्राय: लोग कालिदास, भारबि, माघ, श्रीहर्ष, बाणभट्ट, त्रिविक्रमभट्ट, धनपाल इत्यादि कवियों की गणना शीघ्रता से करने लग जाते हैं। यह ठीक है कि इन कवियों की श्रेष्ठता में सन्देह का कोई स्थान नहीं है, तथापि भाज के समालोचकों को चाहिए कि वह प्राचीन कवियों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए भी भर्वाचीन कवियों को न भुलाएँ क्योंकि ग्राज भी कालिदास कौर बाणभट्ट की भाँति ही न जाने कितने कवि संस्कृत साहित्य-सम्पदा को वृद्धि कर रहे हैं। रूढ़िवादिता एवं पूर्वाग्रह को छोड़कर जब हम अपने मालोच्य कवि ज्ञानसागर को परखते हैं तो हमें उनमें भी महान् कवि और महान: जैन- दार्शनिक के दर्शन होते हैं। उन्होंने जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, श्रीसमुद्रदत्तचरित्र और दयोदयचम्पू - पांच संस्कृत-काम्य-ग्रन्थरूप पुष्प सरस्वती को समर्पित किये हैं । कवि ने अपने इन काव्यों के माध्यम से जन-धर्म तथा सत्य, ग्रहिसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह - इन पाँच महाव्रतों की शिक्षा समाज को दी है। अपने इस प्रयास से एक प्रोर वह कालिदास जैसे कवियों की श्रेणी में बाते हैं; दूसरी पोर बह बौद्धदर्शन के महान् कवि अश्वघोष की समता पाने के भी योग्य सिद्ध होते हैं । कवि ने काव्यशास्त्र सम्मत काव्य के स्वरूप के विषय में प्रपनी निश्चित धारणा प्रकट की है "सालद्वारा सुवर्णा च सरसा चानुगामिनी । कामिनीय कृतिर्लोके कस्य नो' कामसिद्धये ॥ " -- वयोदय २८/६२ कविवर का उक्त कथन काव्य में भावपक्ष और कलापक्ष के समन्वय हेतु कवि को साकार करता हुआ सा प्रतीत होता है । काव्य के भाय-या और बला
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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