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________________ ४०२ महाकवि मानसागर के काव्य-एक अध्ययन राजा युद्ध करने पर उतारू हो जाए तो पीठ दिखाने की अपेक्षा युद्ध हो करना चाहिए।' योद्धामों को परस्पर समान शस्त्र एवं वाहन का प्रयोग करना चाहिए। युद्ध की समाप्ति पर मत व्यक्तियों का अन्तिम संस्कार एवं घायलों का उपचार करना चाहिए। ___ स्पष्ट है कि कवि ऐसी राजनैतिक व्यवस्था चाहता है जिसमें प्रजा की खुशहाली एवं अधीनस्थ राजाभों पर मधुर-नियन्त्रण रह सके। कवि की प्राधिक विचारधारा .. कवि की हार्दिक इच्छा है कि प्रत्येक व्यक्ति मायिक दृष्टि से स्वावलम्बी हो। अपनी इस इच्छा को उन्होंने वणिक्पुत्र भद्रमित्र के चरित के रूप में अभिव्यक्त किया है। व्यक्ति को अपनी वर्णव्यवस्था के अनुसार ही भाजीविका का उपार्जन करना चाहिये। समाज में अर्थोपार्जन का कार्य वरिणग्जनों को ही शोभा देता है। तथा वध मादि निन्द्य कर्म चाणालों का पैतृक व्यवसाय है। - कवि ने अपने काव्यों में समुद्रीय व्यापार, पशुपालन, कृषि, मिट्टी के बर्तन बनाने मादि ज्यवसायों का उल्लेख किया है । प्राखेटवत्ति को उन्होंने निन्ध कर्म मानकर जनसामान्य को उसे छोड़ने की प्रेरणा दी है।११ जयकुमार को उपदेश देते समय भी मुनि ने अपनी योग्यता के अनुसार व्यक्ति को अर्थोपार्जन करने की सलाह दी है । स्पष्ट है कि कवि की दृष्टि में प्रत्येक गृहस्थ पुरुष को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए धनोपार्जन अवश्य ही करना चाहिए। १. जयोदय, ७८२-८५ २. वही, ८।६४-६५ ३. वही, ८८५ ४. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३१-१६ ५. सुदर्शनोदय, २।१-३ ६. बही, ७।३६ ७. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३१७ ८. दयोदयचम्प, ३ श्लोक | के बाद का गद्यभाग। ९. सुदर्शनोदय, ११२१ १०. वही, ७१ ११. दयोदयचम्पू, प्रथम एवं द्वितीय लम्ब । १२. जयोदय, २॥१११-११६
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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