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________________ महाकवि ज्ञानसागर का जीवन-दर्शन ४०१ कार्य करता है, उसके ही राज्य में प्रजा सुखी होती है एवं उसके हो प्रति प्रजा में भक्तिभावना भी उदित होती है । राजा सिद्धार्थ', चक्रवर्ती सम्राट भरत, एवं वषमदत्त ऐसे ही प्रजावत्सल शासक हैं । सम्राट भरत तो राजनीति में अत्यधिक निपुण हैं । अधीनस्थ राजामों से उनके ऐसे पारिवारिक सम्बन्ध है कि वे सभी उनके विरुद्ध विद्रोह करना तो दूर रहा, सोच भी नहीं सकते । राजा को प्रजावत्सल एवं राजनिपुण होने के साथ ही साथ, दूरदर्शी भी होना चाहिए। उसे न केवल बाह्य लोगों की अपितु पन्त:पुर के वृत्तान्तों की भी पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। राजा को व्यक्ति की पूरी परख होनी चाहिए, अन्यथा अन्तःपुर में होने वाले भ्रष्टाचारों के लिए सुदर्शन जैसे निरपराध प्रजाजन दोषी ठहराये जाते हैं। राजामों को यह भी चाहिए कि वह वास्तविक अपराधी को खोजकर ही न्यायपूर्वक दण की व्यवस्था करे। राज्य-संचालन का सर्वप्रमुख अधिकारी राजा होता है। कवि ने न्यायापोश के रूप में भी राजा को हो स्वीकार किया है। राज्य की सलाह देने के लिए एक मंत्रिमण्डल भी होना चाहिए। राजा को प्रर्थव्यवस्था चलाने के लिए एक राजसेठ का पद भी कवि को मान्य है। राज्य की सुरक्षा हेतु कवि को सेनापति पद भी स्वीकार्य है। राजानों के संदेशों को इधर-उधर भेजने के लिए दूतों को भी अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।' प्रजा को राजा के नियन्त्रण में रहना चाहिए । राजा की मोर से प्रसारित माज्ञा का प्रत्येक प्रजाजन को पालन करना चाहिए । कवि ने प्राज्ञाकारी प्रजाजन के रूप में सोमदत्त को प्रस्तुत किया है, जो राजा की प्राज्ञा प्राप्त होने पर राजकुमारी से विवाह की विनम्र स्वीकृति देता है।" युद्ध के सम्बन्ध में भी कवि को एक निश्चित धारणा है कि जब प्रतिपक्षी १. वीरोदय, ३३३ २. जयोक्य, ७३३ ३. दयोग्यचम्पू, ११९२ ४. सुदर्शनोदय, ७॥३५-३६ ५. बही, ८।१० ६. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४१४ ७. जयोदय, ३८ ८. दयोदयचम्प, १३१४ ९. जयोदय, ६।१४ १०. वही, २०५८ ११. स्योदयचम्प, ७ श्लोक १२ पोर १३ के बीच का गद्य भाष ।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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