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________________ i૬૪ (प्रा) छन्द गतिरहित जीवन प्रसम्भव है। सांसारिक प्राणी को उसके चरण गतिशील बनाते हैं, और काव्य को गतिशील बनाते हैं उसमें प्रयुक्त किए गए छन्द । 'छन्द' शब्द 'छन्द धातु से 'प्रसुन्' प्रत्यय द्वारा निष्पन्न हुमा है। इस शब्द का तात्पर्य ऐसे श्लोक से है जो श्रोता को प्रसन्न कर सके । therefa ज्ञानसागर के काव्य - एक प्रध्ययन श्लोकों को जब चरणों, वण मोर मात्रामों के प्राकर्षक बन्धन में निबद्ध किया जाता है, तब उनमें प्रवाह, सौन्दयं भोर गेयता मा जाती है । फलस्वरूप पाठक या श्रोता जब ऐसे श्लोकों को पढ़ता या सुनता है, तब उसे मधुर सङ्गीत सुनने जैसा मानन्द मिलता है; मौर वह छन्दोबद्ध श्लोकों से युक्त काव्य को पढ़ने में या सुनने में ऐसा लीन हो जाता है कि अन्य सभी कार्यों को विस्मृत कर बेता है । काव्य की पद्यात्मक विधा की रचना तो पूर्णतया छन्दोबद्ध श्लोकों में ही की जाती है। प्रत: इस विधा में छन्दों का महत्व प्रत्यधिक है । गद्यात्मक विधा में छन्दों का इतना महत्व तो नहीं होता, किन्तु गद्यकवि भी अपने काव्यों में यत्र-तत्र gratea श्लोकों का प्रयोग करके छन्दों के महत्व का उद्घोष करते ही हैं। इतना ही नहीं बल्कि वे बीच-बीच में ऐसी शब्दावली का प्रयोग करते हैं, जहाँ किसी न किसी वृत्त विशेष की सिद्धि होने लगती है, ऐसे ही स्थलों को साहित्यदर्पणकार ने गद्यकाव्य का 'वृत्तगन्धि' नामक भेद माना है (साहित्यदर्पण, ६।३३० ) । नाटकों में भी जब कोई पात्र अपने कथन की पुष्टि करना चाहता है, या fear भावविशेष का अभिनय करता है, तब शीघ्र ही छन्दोबद्ध श्लोक का प्रयोग करता है । चम्पूकाव्यों में तो जितना महत्व गद्य का होता है, उतना ही पद्य का, इसलिए उनमें भी छन्दों की महिमा प्रक्षुण्ण है । कवि अपने काव्यों में दो प्रकार के छन्दों का प्रयोग करते हैं- मात्रिक प्रोर वाणिक | मात्रिक छन्दों में मात्रात्रों की भोर वाणिक छन्दों में बणं की व्यवस्था से श्लोकों को निबद्ध किया जाता है। साथ ही सुकवि यह भी ध्यान रखते हैं कि कौन से छन्द वीररस के बर्णन में, कौन से प्रकृति-वर्णन में भोर कौन से भक्तिभाव प्रकट करने में सहायक होंगे प्रादि-प्रादि । स्पष्ट है कि काव्य को प्राह्लादक एवं प्राणवान् बनाने में छन्दों का प्रयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रभिनीत करता है । प्रतः कोई भी काव्यशास्त्री मोर काव्यप्रणेता कलापक्ष के इस प्रङ्ग की उपेक्षा नहीं करता है । महारुवि ज्ञानसागर के काव्यों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि उन्होंने प्रचलित एवं प्रचलित दोनों प्रकार के छन्दों का अपने काव्यों में प्रयोग किया है । उनके काव्यों में प्रयुक्त छन्दों की कुल संख्या ४६ है । भागे प्रस्तुत किए गए
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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