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महाकवि बालसागर के संस्कृत-मन्त्रों में कमापन () सुरतवासनापाबन्ध
"सुप्त्वा कामकलाधमाकुलवधू पूर्व प्रबुद्धापि वा, रन्तः श्रीसुबनिद्रितस्य लखितं दोः पाशसम्पदसम् । तस्थौ निश्चलसत्तनुर्विमसतः सच्छेत्तुमेषाधुना नागच्छत्सुविचारचेष्टितमना वाञ्छकसम्भावनाम् ॥"
-जयोदय, १७१४२
नाम
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सावध के प्रत्येक परे के प्रथम पक्षरों को पढ़ने से 'सुरतवासना' पन्न निकलता है, जो इस सम में वर्णित स्त्री-पुरुषों के सुरत-बिहार का संकेत देता