________________
महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-प्रभ्थों में कलापक्ष
(घ) समरसंचयचक्रबन्ध
"सम्म्राजस्तुक् खलु चक्राभं बलवासम्, मकराकारं रचयन् श्रीमद्माधीद् च । रणभूमावभ्रे च खगस्ताक्ष्यंप्रायम्,
यत्नं संग्रामकरं स्मांसति च प्रायः ।। "
今
(2)
म
P6 \ F
க
|
का
5
x
PRAS
க
च
1454 45
د
-जयोदय, ७।११५
如
44.2
(3)
र
ण
भू
H
በ
स्मो
वा
स
11.
३-३७
(8)
प्रस्तुत चक्रबन्ध के घरों में स्थित प्रथमाक्षरों को पढ़ने से क्रमश: 'समरसंचय' शब्द बनता है। इस शब्द से यह संकेत मिलता है कि इस सर्व में युद्ध के लिए सेना सजाने का वर्णन किया गया है ।