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महाकवि भानसागर के काम-एसपन काम्यों में इनकी उपस्थिति के प्रभाव में भी मानन्द प्राप्त हो जाता है, मनः ये काव्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण न होकर कवि के कौशल के परिचायक ही है। भारतीय-काव्य-शास्त्रियों को भी अलङ्कारों के विषय में ऐसी धारणा है।'
हमारे पामोच्य महाकवि भानसागर ने अपनी कविता-कामिनी को सबाने में अनेक अलङ्कारों का प्रयोग किया है। उनके काम्यों के प्रायः सभी. मोक अलंकत हैं। उनके काम्यों का परिशीलन करने से ज्ञात होता है कि उन्होंने अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उपमेयोपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रपह्नति, प्रतिसयोक्ति, तुल्ययोगिता, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टान्त, निदर्शना, अर्थान्तरन्यास, समन्वय, परिसंख्या, व्यतिरेक, मतिदेश, उल्लेख, समासोक्ति, भन्योक्ति, तद्गुण, स्वभावोक्ति, प्रप्रस्तुतप्रशंसा, प्रसङ्गति, प्रतीप, ययासंख्य, दीपक, विभावना, एकावली, पुनरुक्तववाभास इत्यादि भनेक प्रमङ कारों का प्रयोग किया है। किन्तु अनुप्रास, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा और अपनुति-उनके विशेष रूप से प्रिय प्रलाकार हैं। अब उनके काव्यों में प्रयुक्त मुख्य-मुख्य अलङ्कारों के उदाहरण प्रस्तुत हैं। सर्वप्रथम प्रस्तुत है, बन्दालङ्कारों में अग्रगण्य अनुप्रास :-- मनुप्रास :-- 'मनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्पेऽपि स्वरस्य यत् ।'
(साहित्य-दर्पण, १०॥३) श्रीमानसागर ने अनुप्रास के छेकानुप्रास, वृत्त्यनुप्रास इत्यादि सभी भेदों का प्रयोग अपने काव्यों में किया है । अन्त्यानुप्रास अस्मदालोच्य कवि की सबसे बड़ी विशेषता है । काव्यों के कुछ अंशों को छोड़कर कवि ने अन्त्यानुप्रास का प्रयोग करने का स्तुत्य प्रयास किया है । निम्नलिखित श्लोक में वृत्त्यनुप्रास भोर अन्त्यानुप्रास की मिली-जुली छटा का अवलोकन कीजिए :--
. "सपदि विभातो जातो प्रातर्भवभयहरणविभामः। • शिवसदनं मृदुवदनं स्पष्टं विश्वपितुर्जिनसवितुस्ते ॥" ८.१०
यहां पर क्रमश: 'तो' वर्ण की तीन वार 'भ' वर्ण की दो बार, दन' वर्णसमूह की दो बार मोर 'तू' वर्ण को दो वार मावृत्ति हुई है। साथ ही प्रथम पंक्ति का मन्त्यावर 'ते' दूसरी पंक्ति में भी पावृत्त हुमा है। मव देखिए लाटानुप्रास का उदाहरण
"मनोरमाधिपत्वेन स्याताय तरुणायते। मनो रमाधिपत्वेन स्याताय तरुणायते ॥"
-सुदर्शनोदय, ॥२॥ १. (क) काव्यप्रकाश, 10
(ब) साहित्यदर्पण, ११