SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि मानसागर के काग्य-एक अध्ययन किया है-ललित कला पोर उपयोगी कला। ललित कलाएं हमारे जीवन को सरस बनाती हैं और उपयोगी कलाएं हमारी दैनिक प्रावश्यकताएं पूरी करती हैं। ललित कलामों में पांच प्रसिद्ध कलाएं हैं-काव्यकला, संगीतकला, चित्रकला, मूर्तिकला और वास्तुकला। इनमें काव्यकला सर्वश्रेष्ठ कला है । अपने मनोभावों को लेखनी पोर काव्यात्मक वाणी के माध्यम से सुन्दरतम अभिव्यक्ति प्रदान करना ही कामकसा है। (ख) काव्य कला के अङ्ग जिस प्रकार किसी वस्तु को सजाने-संवारने की प्रक्रिया के कई प्रङ्ग होते है, उसी प्रकार काव्य को सुन्दरतम रूप देने वाली काव्य-कला के भी कुछ मङ्ग, जो इस प्रकार हैं :-मलकार, छन्द, गुण, भाषा, शैली, वाग्वैषम्य इत्यादि। काम्य के कलाम में इन सबका ही विचार किया जाता है । काव्य में कला का अनुपात पब कोई पदार्थ दो वस्तुमों के संयोष से निर्मित होता है, तब उन वस्तुषों कासपदार्थ के निर्माण में परस्पर कितना अनुपात होना चाहिए ? यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है। पुरुष जब अपने रूपरङ्ग, पद पोर प्रतिष्ठा के अनुसार हो अपना रहन-सहन बनाता है, तभी उसका व्यक्तित्व निखर पाता है और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। यदि व्यक्ति अपने रूपरङ्ग इत्यादि की उपेक्षा करके वेशविन्यास करता है, तब उसका व्यक्तित्व या तो व जाता है, या हास्यापर हो जाता है। बस, ऐसी ही स्थिति काम्य में कला के अनुपात को भी है । सच्ची कला वही है जो व्यक्ति के विचारों को यास्तविक अभिव्यक्ति दे सके। काम्य में भावपक्ष प्रधान होता है, इस बात को सभी साहित्यिक स्वीकार करते हैं । मतः काम्य में कला का दर्शनम्, काम्यसमस्यापूरणय, पट्टकावानवेत्रविकल्पाः, तक्षकर्माणि, तक्षणम .. वास्तुविधा, रूप्यपरीक्षा, पातुबाद: मणिरागाकरमानम्, वृक्षायुर्वेदयोगा:, मेषकुक्कुटलावकयुद्धविषिः, सुकसारिकाप्रलापनम्, उत्सादने संवाहने केशमदने पकौशलम्, प्रक्षरमुष्टिकाकपनम् । म्लेच्छितविकल्पाः, देशभाषाविज्ञानम्, पुष्पशकटिका, निमित्तमानम्, यन्त्रमातृका, धारणमातृका, सम्पाठयम्, मानसी काम्यक्रिया, अभिधानकोशः, छन्दोमानम्, क्रियाकल्पः, वैमयिकीनाम् बलितकयोगाः, वस्त्रगोपनानि, वृतविशेषः, पाकर्षक्रोग, बालक्रीडनकानि, बेजपिकोंनाम, व्यायामिकीनां च विवानां ज्ञानम्, इति चतुःषष्ठिरङ्गविवाः । -वात्स्वावन, कामसूत्रम्, ३३१५ । (चौखम्बा संसत संस्थान वाराणसी तृतीय संसरण १९८२)
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy