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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-अन्यों में मावपक्ष २६५ केकिकलं तु लपत्यतिमधुरं जलदस्तनितसकाशात् ॥ किन्न चकोरडशोः शान्तिमयी प्रभवति चन्द्रकला सा॥' गुरुविषयक मक्तिमाव सुदर्शनोदय में गुरुविषयक भक्तिभाव को अभिव्यञ्जना सात स्थलों पर हुई है। दो स्थल उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं (घ) सुदर्शनोदय में मङ्गलाचरण में कवि ने गुरुवन्दना की है "भवान्धुसम्पातिजनकबन्धुरुश्चिदानन्दसमाधिसिन्धुः । गतिममैतत्स्मरणकहस्तावलम्बिनः काव्यपथे प्रशस्ता ॥"२ (प्रा) सेठ वृषभदास भोर जिनयति स्वप्नों का तात्पर्य जानने हेतु एक मुनिराज के पास जाते हैं । दोनों उनका दर्शन करके उन्हें प्रणाम करते हैं "केशान्धकारोह शिरस्तिरोऽभूद् दृष्ट्वा मुनीन्, कमलाश्रियो भूः। करदतं कडमलतामयासीत्तयोर्जजम्भे मुदपां सुराशिः ।। कृतापराधाविव बद्धहस्ती जगद्वितेच्छो तमग्रतस्तो। मितोऽथ तत्प्रेमसमिच्छुकेषु सङ्कलेशकृत्वादतिकोतुकेषु । दृष्ट्वेति निर्गत्य पलायिता वाङ्नमोऽस्त्वितीडङ् मधुला मियावा ।।' नविषयक मक्तिमाव . राजा धात्रीवाहन के वर्णन में कवि का नृपविषयक भक्तिभाव पमिव्यजित होता है "धात्रीवाहननामा राजाभूदिह नास्य समोऽवनि भानाम् । तेजस्वीरक यांऽशुमाली निजप्रजायाः यः प्रतिपाली ।। यतिरिवासको समरसङ्गतः सुधारसहितः स्वर्गिवन्मतः । पृथुदानवारिरिन्द्रसमान एवं नानामहिम विधानः ॥"४ व्यग्य व्यभिचारिमाव जिनमति के वचनों में हर्ष नामक व्यभिचारिभाव को,५ वषमदास. विचारों में चिन्ता नामक व्यभिचारिमाव की भोर ग्याले के लड़के के मनोभावों १. सुदर्शनोदय, शगीत सं ७ २. वही, १३ ३. बही, २०२५-२७ ४. वही, ११३८-३९ ५. वही, २०३६ १. वही, ३४२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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