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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य
व्यङ्ग्य व्यभिचारिमाव --
वीरोदय में रानी प्रियकारिणी से स्वप्न सुनकर राजा की जो दशा हो जाती है, उसे हम हर्ष प्रौर प्रावेग नामक व्यभिचारिभावों की व्यंग्यता कह सकते हैं ।' प्रपने पिता के सम्मुख विवाह प्रस्ताव अस्वीकार करते समय महावीर स्वामी का निवेद नामक व्यभिचारिभाव भी पूर्णरूपेण श्रभिव्यञ्जित हुआ है। परिपुष्ट स्थायिभाव
रूप से अभिव्यञ्जित हो रहा है ।
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रानी अपने द्वारा देखे गये सोलह स्वप्न राजा को सुनाने प्राती है"नयनाम्बुज सम्प्रसादिनों दिनपस्येव रुचि तमोऽर्दनीम् । समुदीक्ष्य निजासनार्ध के स्म स तां वेशयतीत्यथान के ।।
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एक अध्ययन
deferre भक्तिभाव -
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इस स्थल पर राजा सिद्धार्थ का रानी प्रियकारिणी के प्रति रतिभाव प्रपूर्ण
१. वीरोदय, ४ । ३७
२. वही, ८।२३
३. वही, ४।३० ४. सुदर्शनोदय, १1१-२
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(ग) सुदर्शनोदय में भाव -
सुदर्शनोदय में भी भावकाव्य के पाँचों प्रकार दृष्टिगोचर होते हैं। पांचों प्रकार सोदाहरण प्रस्तुत हैं-
सुदर्शनोदय में देवविषयक भक्तिभाव की अभिव्यञ्जना चार स्थलों पर हुई है । दो स्थल उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं
(म ) मङ्गलाचरण में कवि ने जिनेन्द्रदेव की स्तुति की है— "वीरप्रभुः स्वीयसुबुद्धिनावा भवाब्धितीरं गमितप्रजावान् । सुराराध्यगुणान्वया वाग्यस्यास्ति नः शास्ति कवित्वगावा ॥ बागुलमा कर्मकल जे तु रन्त दुःखाम्बुनिधो तु सेतुः । ममास्त्वमुष्मिस्तररणाय हेतुरदृष्टपारे कविताभरे तु ।।”४
(मा) श्रीज्ञानसागर ने भर्हन्तदेव की पूजा में अनेक भजन सुदर्शन द्वारा प्रस्तुत कराये हैं, उनमें से एक प्रस्तुत है
"जिन परियामो मोदं तव मुखभासा ||
खिन्ना यदिव सहबकुद्विधिना, निःस्वजनी निषिना सा ॥
सुरसनमशनं लब्ध्वा रुचिरं सुचिरक्षुधितजनाशा ॥