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________________ २४. महाकवि ज्ञानसागर के काम्य-एक अध्ययन युद्ध-वर्णन अपने नायक को शूरवीर सिद्ध करने के लिए कवि अपने काव्य में युद्ध-वर्णन करता है । नायक की विजय और खलनायक को पराजय, यह नायकप्रधान काम्यों की मुख्य विशेषता है, इस विशेषता को अपनाने के लिए कवि अपने काव्य में स्थान स्थान पर वीररस पोर रोटरस की निष्पत्ति करता है । कविवर ज्ञानसागर की कृतियाँ प्रायः शान्तरस प्रधान हैं, फिर भी जयकुमार पौर सुलोचना के विवाह में बाधा के रूप में कवि ने, जयकुमार पोर मकंकीति के पुरको प्रस्तुत किया है, जो संक्षेप में इस प्रकार है : ___ मर्ककीर्ति पौर जयकुमार की सेनाएं गर्जना करती हुई परस्पर गंध गई। सेनापति की प्राशा को सुनकर नगाड़े बबा दिए गए । सैनिक अपनी भुजाएं फटकारने लगे और कोषपूर्वक इधर-उधर चलने लगे। जयकुमार की सेना में जयकुमार का जयघोष गूंजने लगा। प्राकाश सैनिकों के कठोर पोर भयङ्कर स्वरों से त्रस्त हो गया। भयकर शस्त्रों को धारण करने के कारण, भय उत्पन्न करने बाली राजा की सेना के द्वारा उठाई गई धुलि से सूर्य भी टक गया। युर में, हाथ में धारण की गई तलवारों की चमकती हुई पंक्ति को, धुलि से धूसरित प्राकाश में चमकती हुई विजली समझकर मोर नाचने लगे। वीर एक दूसरे पर वेग-पूर्वक प्राक्रमण कर रहे थे। हाथी में पड़ा हुमा सैनिक हाथी वाले सैनिक के साथ, पालपंदल के साथ, रथारोहो-रथारोही के साथ भोर मश्वारोही-प्रश्वारोही के साथ युद्ध कर रहा था। सैनिकों के शस्त्र परस्पर टकरा रहे थे। x + + एक में खड्ग से युद्ध करने की शक्ति पी, दूसरे त्रिशूलधारी और गदाधारी थे । हाषियों के गण्डस्थल मदबल बहा रहे थे। किसी पैदल सैनिक को जंगा पर माक्रमण करके हाथी के द्वारा उसको वैसे ही विदीर्ण कर दिया गया था जैसे कि एक मत्त हावी द्वारा लकड़ी तोड़ दी जाती है । एक हाथी दूसरे हाथी पर माक्रमण करता हुमा, पर्वत की चोटी पर प्राश्लिष्ट-मेष की शोभा को धारण कर रहा था । सैनिकों द्वारा फेंके गए बाणों को भ्रमरों के प्राक्रमण के समान समझकर रोमाञ्चित शरीर बाला हायो धन्य है। तड़पते हुए कवन्धों को उन घटामों से वह सेना साक्षात घनश्चर हो रही थी। हाथियों के गरजने से, घोड़ों के हिनहिनाने से, रथों की घरघराहट से पौर नगाड़ों की गड़गड़ाहट से सेनाएं मुखरित हो रही थीं। एक साहसी सैनिक ने एक सैनिक को बब पृथ्वी पर गिराया तो उसने भी उठकर दोनों परों के प्रहार से उसे दूर फेंक दिया । कोई संनिक मूर्धा को प्राप्त हो रहा था। कोई गर्जना कर रहा था। वायु से हिलती हुई पताकाएं माकाश में व्याप्त हो गई थी। सैनिक सामने जाते हुए सैनिक का सिर छेद रहे थे। बाणों की पंक्ति सेनानायकों के हृदय में प्रविष्ट हो कर उन्हें मोक्ष प्राप्त कर रही थी। बह योडामों के वक्षस्थलों में वेश्या के समान प्रविष्ट हो रही थी। योषानों के इधर-उधर लड़कते हुए शिरों को देखकर ऐसा लगता था. मानों चन्द्रमा के
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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