SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ महाकवि शानसागर के काव्य-एक अध्ययन विद्यमान थे । उस मण्डप में देवगणों को गम्भीर एवं प्रानन्दोत्पादक ध्वनियां सुनाई दे रही थीं। ऐसे उस सुन्दर मण्डप में वीरभगवान् के मुख से कल्याणकारिणी पाणी निःसृत हो रही थी। पात्रा-वर्णन श्रीज्ञानसागर की रचनामो में तीन स्थलों पर यात्रा का वर्णन मिलता है, एक बार वीरोदय में भोर दो बार जयोदय में। सर्वप्रथम वीरोदय से भगवान् बोर के जन्माभिषेक के अवसर पर देवगणों की कुण्डनपुर की यात्रा का वर्णन प्रस्तुत है : भगवान् के जन्म का शुभ समाचार सुनकर देवराट् इन्द्र ने प्रयाण की सूचना देने वाली गड़गी पिटवाई, भौर सभी को एकत्र करके वह कुण्डनपुर की भोर चल पर। उन देववरणों के हाथों में पुष्पों के पात्र थे । मार्ग में उन्होंने पाकाशमला के दर्शन किए। भनेक प्रकार की चेष्टामों को करते हुए मोर प्राकृतिक हल्यों से मानन्दित होते हुए देवपण कुण्डनपुर पहुंचे। उन्होंने वीरप्रभु की जन्मभूमि की तीन बार प्रदक्षिण की। जयोदय में यात्रा-वर्णन का प्रथम प्रसङ्ग वहाँ पर माता है, वहां चरितनायक जयकुमार की सेना प्रकीति से युद्ध करने के लिए चल पड़ती है : ___जयकुमार की सेना में भुजबल पर अभिमान करने वाले, मोजस्वी राबा एकत्र हुए। वे सभी वीररस से सुशोभित हो रहे थे। वे सभी कोष की लालिमा से युक्त थे । राजा की इस सेना के नगारे की ध्वनि जब प्राकाश में पहुंची, तब पर्वत भी कांप उठे। चञ्चल सुन्दर चोड़ों से युक्त, शुभ्र वस्त्र बाली ध्वजामों से युक्त, उन्मत्त हाथियों के मद से युक्त जयकुमार की सेना, लहरों एवं फेन से युक्त नदी के समान चल पड़ी। उस समय शत्रुनों की स्त्रियों के स्तन कज्जल से युक्त मासुमों के जल को धारण कर रहे थे। जब दिशामों के समूह धूल से धूसरित हो गए, तब उसकी सेना के प्रागमन को शत्रुनों ने जान लिया। राजा जयकुमार की सेना से उठाई मई धूलि पल समूह के रूप में स्वर्ण दीपकों पर, कलर रूप से चन्द्रमा पर पड़ती हुई x x x सेना के मद को गा रही थी। xxx अपकुमार की सेना के घोड़ों के खुरों की चोट से मूच्छित होती हुई पृथ्वी के ऊपर मानों सेना में विद्यमान ध्वजामों के वस्त्रों से हवा की जा रही थी। X X X 13 १. बोरोदय, १३।१-२४ २. वही, ७।६-१२ ३. जयोदय, ७९५-११२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy