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में जैन दर्शन के प्रसिद्ध आचार्यों का ऐतिहासिक दृष्टिकोण समाविष्ट किया गया है । इस निबन्ध को लघु पुस्तिका का रूप देकर प्रकाशित किया गया है । यह पुस्तक भी महाकवि ज्ञान सागर जी महाराज ने दीक्षा के पूर्व लिखी थी ।
20. ऋषि कैसा होता है यह 40 श्लोक प्रमाण अप्रकाशित काव्य है । वैसे इसमें साधुचर्या का वर्णन है । मुझे लगता है कि लेखक ने पहले ऋषि कैसे होता है इस पर लेखनी चलाने का भाव किया होगा, फिर बाद में वही विचार मुनिमनोरञ्जनाशीति के रूप में परिवर्तित हो गए होंगे । इसलिए इसे गौण करके मुनिमनोरञ्जनाशीति के रूप में लिख दिया हो, अत: इस काव्य के समस्त श्लोक मुनिमनोरञ्जनाशीति काव्य में संयवक्त रूप से प्रकाशित कर दिये गये हैं । टीका-ग्रन्थ
21. प्रवचनसार आचार्य कुन्द-कुन्द स्वामी द्वारा अध्यात्म त्रिवेणी में यह दूसरे नम्बर का ग्रन्थ माना जाता है । यह ग्रन्थ सम्यग दर्शन, सम्यग् ज्ञान एवं सम्यग-चरित्र रूप तीन अधिकारों में विभक्त हैं । श्रमणों के लिए तो यह मूल प्राण है । इस ग्रन्थ पर आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी, आचार्य जयसेन स्वामी की संस्कृत टीकायें उपलब्ध हैं । इस ग्रन्थ पर कई विद्वानों की हिन्दी टीकायें भी हैं, लेकिन वह टीकायें निष्पक्ष नहीं कही जा सकती हैं । आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने कुछ मुख्य-मुख्य गाथाओं को लेकर आचार्य कुन्द-कुन्द स्वामी के वास्तविक हृदय को उजागर करने का प्रयास किया है । अध्यात्म प्रेमी बन्धुओं के लिए यह ग्रन्थ विशेष रूप से पठनीय है । यह ग्रन्थ संस्कृत छाया एवं हिन्दी टीका सहित सजिल्द उपलब्ध है । यह टीका ग्रन्थ महाकवि ज्ञानसागर महाराज ने दीक्षा. के पूर्व लिखी थी, उस समय आपका नाम ब्रह्मचारी पंडित भूरामल शास्त्री था ।
22. समयसार आचार्य कुन्द-कुन्द स्वामी दिगम्बर परम्परा के आध्यात्मिक रसिक मुख्य आचार्य माने जाते हैं । भगवान महावीर के गणधर गौतम के बाद कुन्द-कुन्द स्वामी का नाम मंगलाचरण के रूप में लिया जाता है । आपके द्वारा बतायी गयी आम्नाय जिनेन्द्र देव द्वारा कथित आम्नाय मानी जाती है । इसीलिये दिगम्बर आम्नाय में