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________________ महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन-कौशल २१७ वाले मधुसमूह से युक्त भूमण्डल पर चलता हुमा राहगीर जब देखता है कि भ्रमर कमलिनी का चुम्बन करता है, तो वह अत्यधिक विचलित हो जाता है। कमलसमूह पर बैठी हुई भ्रमरपंक्ति ऐसी लगती है मानों शरद् ऋतु द्वारा लिखित कामदेव का प्रशस्तिलेख हो । पुष्पित कांस रूप चंवर, सप्तपर्ण रूप छत्र और हंसस्वररूप चारणों की विरुदावली कामदेव को सम्राट् वना रहे हैं । इस ऋतु को रात्रि चन्द्रमा सहित प्रत्यधिक शोभाशालिनी होती है । प्रन्य ऋतु की रात्रि ऐसी शोभा धारण नहीं करती। ऐसी ही इस सौन्दर्यशालिनी ऋतु में भगवान महावीर मुमुक्षु हुए।' शीत (हेमन्त) वर्णन अपने पिता के सम्मुख विवाह के प्रस्ताव को ठकराकर जव भगवान् महावीर संसार की स्वार्थपरक मुर्खता को दूर करने का विचार कर हो रहे थे कि शीतकाल का प्रागमन हो गया । सूर्य कन्या राशि को छोड़कर धन राशि पर मा गया है । इन दिनों हिमपात होते समर जव कोई स्त्री कुएं से जल भर कर आती है, तो बर्फ से उसके वाल इस प्रकार श्वेत हो जाते है कि उसके बच्चे भी उसे नहीं पहिचानते । लोगों की कान्ति मलिन हो रही है, और वृक्ष नष्ट हो रहे हैं। शीतकालीन वाय स्त्रियों के केशों मोर वस्त्रों को प्रस्तव्यस्त कर रहा है। इस समय चारों भोर से बन्द मकान में शय्या में स्थित धनी पुरुषों को तो कोई कष्ट नहीं है, किन्तु वस्त्र भोर प्रावास के प्रभाव से ग्रस्त दरिद्र व्यक्ति एकमात्र भगवन्नामस्मरण का ही सहारा लेकर रात्रि व्यतीत करता है। ऊंट गालों को फुलाकर तरह-तरह के स्वर कर रहे हैं । वानरों की चंचलता समाप्त हो रही है । शीतकाल ने कामदेव की चेष्टानों को निष्फल कर दिया है । रात्रि दिन की अपेक्षा बड़ी हो गई है। चारों ओर शीत का साम्राज्य है, उष्णता केबल पृथ्वी के कुंओं में, वटवृक्षों में पोर सुन्दरी स्त्रियों के स्तनों में ही विद्यमान है । परिवार के सब सदस्य अंगीठी का सेवन कर रहे हैं। सम्भवतः सूर्य भी शीत से व्याकुल होकर x x x बल्दी सोकर देर में उठता है, इसलिए दिन छोटे हो जाते हैं। या यह हेमन्त ऋतु सूर्य से युद्ध करके उसकी उष्ण किरणों को स्त्रियों के स्तनों में पहुँचा रही है। वक्षों के पत्ते गिर रहे हैं, जल की धारा का उल्लेख भी हृदय को कम्पित कर रहा है। मनुष्य सदेव अग्नि के सामने ही बैठने का विचार करते हैं। पक्षियों का संचार रुक गया है । पुरुष अपनी स्त्री के प्रबर वार-वार चूमने की इच्छा करता है। शीतकाल के कारण नवविवाहिता स्त्री अपने पति से अर्द्धरात्रि के समय उपेक्षा नहीं रख पाती। यह शीतकाल तुषार के द्वारा सब को पीड़ित कर रहा है । शीत से रक्षा के लिए ही मानों जनों ने भी वर्फ रूप वस्त्र धारण कर लिया है। कन्द की श्वेत कलियां शीत से भयभीत तारागणों के समान प्रतीत होती हैं। शीतकाल के कारण १. बीरोदय, २१॥१.२०
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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