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________________ २११ महाकवि ज्ञानसागर का वर्णन-कौशल यदि कवि इसे और भी विस्तार देता, तो इसकी मनोहारिता में प्रोर भी वृद्धि होती। द्वीप-वर्णन महाकवि ज्ञानसागर ने अपनी रचनामों में द्वीप-वर्णन चार स्थलों पर किया है । इन चार स्थलों में से दो स्यलों में वर्णन तो क्या किया है, केवल नाम-मात्र के लिए द्वीपों का उल्लेख कर दिया है - एक तो मालव देश की स्थिति बताते समय जम्बूद्वीप का उल्लेख किया है दयोदय चम्पू, १ श्लोक के बाद का गद्यभाग; मोर दूसरा जब भद्रभित्र धनार्जन हेतु घर से प्रस्थान करता है, तब रत्नद्वीप का उल्लेख किया है श्री समुददत्तचरित्र ३.१७. पर वीरोदय में भारतवर्ष की स्थिति बताते हुए कवि ने जम्बूद्वीप का कुछ भी दर्णन किया है, जो इस प्रकार है : ____ असंख्य द्वीपों वाली, समुद्र से घिरी हुई पृथ्वी के मध्य में 'जम्बू' नामक सर्वढीपशिरोमणि दीप प्रतिष्ठित है । इस जम्बूद्वीप के मध्य में एक लान योजन ऊंचा सुमेरु पर्वत है । जम्बूद्वीप के नीचे शेषनाग रूप दण्ड स्थित है; और ऊपर सुवर्ण-क्लंश के समान सुमेरु पर्वत है, इन दोनों के होने से जम्बूद्वीप छत्र की उपमा को धारण कर रहा है। इस गोलाकार दीप के चारों मोर समुद्र की स्थिति है। इसके सात-क्षेत्रों में दक्षिण दिशा में स्थित किसी क्षेत्र में भारतवर्ष की स्थिति है (वीरोदय, २॥१-५) ___ इसी प्रकार प्रङ्ग-देश की स्थिति को बताते समय भी कवि ने पुनः जम्बूद्वीप का वर्णन किया है : विद्वानों को प्रानन्दिन करने वाला, द्वोपाधिपति, पर्वतश्रेष्ठ सुमेरुपवंत को मुकुट के समान धारण करना हमा, पृथ्वी के मध्य में प्रसिद्ध जम्बूद्वीप स्थित है। यह जम्बूद्वीप एवार्थचतुष्टय का प्राश्रय स्थान है, अनादिसिद्ध है, विचारशील लोग इसकी चर्चा करते ही रहते हैं। इस प्रकार का यह श्रेष्ठद्वीप, पुण्यरूप सम्पदा मंगलदीप की समता को धारण करता है। इसके एक भाग में भरत नामक क्षेत्र की अवस्थिति है (सुदर्शनोदय, १।११-१२।) ऋतु-वर्णन प्रत्येक मानव के जीवन की कुछ विशिष्ट प्रवस्थाएं होती हैं, जिनका क्रम है-शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढावस्था पौर वृद्धावस्था । इसी प्रकार प्रकृति देवी भी कुछ विशिष्ट अवस्थामों में होकर गुजरती है-ये प्रवस्थाएं हैं-शरद, हेमन्त, शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म पोर प्रावट । प्रकृति अपनी इन अंवस्थानों से स्वयं तो प्रभावित होती ही है, साथ ही अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को भी प्रभावित कर देती है। फिर सुकुमार हृदय कवि तो उससे कुछ ज्यादा ही प्रभावित होता है । अपने पालोच्य महाकवि शानसागर की
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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