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________________ २०६ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक अध्ययन सुन्दर तट पर जयकुमार की इच्छा उत्सव मनाने की हुई । वहाँ उन्होंने एक सुन्दर वन देखा । वह वन उस समय कल्पवृक्षों से प्रतिमनोहारी लग रहा था । सुन्दरसुन्दर पुष्पों से युक्त वह वन, नन्दन वन के समान पुण्यात्मा ऋषियों के द्वारा सेव्य था । उस वन में ऊंची-ऊंची शाखाओंों वाले वृक्ष थे। वह इन फलों की शोभा से समृद्ध था । उसमें सुन्दर-सुन्दर बिल्वफल थे । XX X प्रपने मुख से स्पर्द्धा के फल को देने के लिए, खिले हुए पुष्पों को लेने के लिए उत्सुक महिला, भ्रमर के द्वारा पीड़ित होकर सीत्कार कर रही थी। ऐसे वन में जयकुमार और सुलोचना सुशोभित हो रहे थे । ' जब जयकुमार सुलोचना के साथ विवाह करके लोट र थे, तब मागं में एक सुन्दर बन देखा । तब उन्होंने पत्नी सुलोचना से कहा--' यह वन मनुष्य को रोमांचित करने वाला है। हे प्रिये ! इस वन की पवित्र वायु, हमारे मार्ग जनित श्रम का हरण करने वाली है। इस वन में प्रजन वनों से मार्ग को पृथ्वी कुलवनों के समान सुशोभित हो रही है । यहाँ के मोरों की कान्ति तुम्हारे केशों जैसी है । हे मन्दगामिनि ! तुमसे ही चलने की शिक्षा यहां के हाथी प्राप्त कर रहे हैं मोर देखने की कला में अपने को तुमसे पराजित पाकर यह मृग भाग रहा है । " इस प्रकार श्रीज्ञानसागर के काव्यों में प्राप्त होने वाले वन वर्णन को देखने से पता चलता है कि कवि ने वन-वर्णन बहुत विस्तृत नहीं किया है, जहाँ किया भी है वहाँ कथा प्रसंग के अनुसार किया है। श्री ज्ञानसागर के वन-वन का एक वैशिष्ट्य घर है, वह यह कि उनका बन वर्णन सुकुमारता से प्रोत-प्रोत है । कहीं भी कवि ने हिंसक पशुयों से होने वाली वन की भयानकता का उल्लेख नहीं किया है । मेरे विचार से यदि कवि वनों की निर्जनता, भयानकता, दुर्गमता मोर हिंसक पशुओं की उपस्थिति का चित्र खींचकर एक बार पाठक के हृदय को कम्पित कर देता तो उसका वन-वर्णन पूर्णता को प्राप्त हो जाना । I नदी-वर्णन - नदी - वन भी कविकृत प्रकृति-वर्णन का एक महत्वपूर्ण अङ्ग हैं । प्रकृतिप्रेमी प्रत्येक सुकवि जहाँ पर्वतों और वनों का प्रालङ्कारिक-वर्णन करने में कुशल होता है, वहाँ वसुन्धरा के वक्षस्स्थल पर हार के समान सुशोभित नदियों का स्वभावोक्तिपूर्ण वर्णन करने में भी उसको कुशलता प्रकट हो जाती है। महाकवि श्रीज्ञानसागर की रचनाओं में नदियों का उल्लेख प्राठ बार माया १. जयोदय, १४।१-१४ २. वही, २१।४१०४
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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