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________________ १९८ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य--एक अध्ययन द्वारा कवि अपने विस्तृत भौगोलिक ज्ञान का भी परिचय दे देता है । इन पदार्थों के रोचक-वर्णन से वह पाठक को प्राकर्षित कर पाने में भी सफलता प्राप्त करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि काव्य में वर्णन कौशल कवि को समर्थता को प्रकट करने के लिए अत्यन्त प्रावश्यक है। कवि प्रपने काव्यों में पदार्थों का जो वर्णन करता है. उसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है--एक तो प्राकृतिक पदार्थों का वर्णन और दूसरा वकृतिक पदार्थों का वर्णन । अब सर्वप्रथम प्राप में सामने प्राकृतिक पदार्थों का वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है प्रकृति शब्द प्र उपसर्ग पूर्वक कु घात के योग से निप्पन्न हुमा हैं। प्र= उत्तम, कृति रचना, इस प्रकार प्रकृति शब्द का तात्पर्य है, सर्वोत्कृष्ट रचना । हम प्रकृति की परिभाषा इस प्रकार दे सकते हैं :"प्रकृति ईश्वर की वह सर्वोत्कृष्ट रचना है। जिसके निर्माण में मानव का कोई योगदान नहीं होता।" प्रकृति और मानव का ऐसा सम्बन्ध है कि कोई भी मानव उसकी क्रीमोंडा से प्रभावित नहीं रह सकता । गम्भीर से गम्भीर व्यक्ति भी प्रकृति की गोद में सरसता की अनुभूति करता ही है। जब साधारण मानव-समाज ही प्रकृति-नटी के क्रिया-कलापों से इतना प्रभावित होता है तो फिर सहृदय-सामाजिक को तो बात ही क्या है ? उसके हृदय की सुकुमार भावनाएं ही प्रकृति के कार्य-कलापों को देखकर प्रस्फुटित होती हैं । इसीलिए प्रत्येक कवि मानव द्वारा निर्मित पदार्थों की अपेक्षा प्रकृति-वर्णन में अपने हृदय के भावों को उड़ेल कर रख देता है। उसके काव्य का उषागमन किसी निराश हृदय में प्राशा का सञ्चरण है; हिमालय की ऊंची और दृढ चोटियां किसी की ऊंची कल्पना मोर हृदय की दृढ़ता की प्रतीक हैं, सरोवर में खिले हुए कमल किसी के सुकुमार चरणों का स्मरण दिलाते हैं; पूर्णचन्द्र किसी के मुख की प्राभा को लेकर उदित होता है, पक्षियों का मधुर कलरव किसी की वीणा का निदान है - इस प्रकार कवि प्रकृति-नटी के सौन्दर्य का वर्णन करने के साथ ही उसका उपयोग उपमान इत्यादि के रूप में भी कर लेता है। प्रायः सहृदय-सामाजिक होने के कारण कवि प्रकृति-वर्णन करता ही है, यह बात उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाती है । फिर किसी भी काव्य में प्रति वर्णन एक अनिवार्य सत्त्व है । प्रकृति-वर्णन काव्य में पाई हुई घटनामों के उपस्थितीकरण के लिए प्रावश्यक देश-काल और वातावरण का निर्माण करने में सहयोग देता है। कवि अपने काव्य के पात्रों के लिए सुखपूर्ण वातावरण को उपस्थित करते समय प्रकृति की सुकमारता का वर्णन करता है पोर पात्रों की दुःखमयी अवस्था में उसी प्रकृति का भीषण रूप भी पाठकों के सामने उपस्थित कर देता है। संयोगावस्था में
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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