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यह महाकाव्य भी महाकवि ज्ञानसागर जी ने दीक्षा के पूर्व लिखा था, जिस समय आपका नाम ब्रह्मचारी पंडित भूरामल शास्त्री था ।
5. दयोदय चम्पू चम्पू काव्यों की परम्परा बहुत प्राचीन काल से गंगा-जमुना के संगम के समान मानी जाती है । क्योंकि चम्पू काव्य में गद्य एवं पद्य दोनों का ही सम्मिश्रण होता है । इन चम्पू काव्यों की शैली पाठकों के लिए रुचिकर एवं सहज अर्थ बोध कराने में कारण बनती है । यह दयोदय चम्पू काव्य भी बहुत ही सरल है। इस चम्पू काव्य में विषय वस्तु को गागर में सागर के समान भरा गया है । इस काव्य में कवि ने एक मृगसेन धीवर के छोटे से अहिंसाव्रत को लेकर अहिंसा व्रत की महिमा का बखान किया है । काव्य की विषय वस्तु से ज्ञात होता है कि धर्म या आचरण किसी जाति विशेष की बपौदी नहीं है । एक धीवर जैसी तुच्छ जाति के मृगसेन धीवर भी अहिंसा व्रत के फल को पा गया । काव्य में धीवर को भी वेदों का ज्ञान होता है, यह बात भी दर्शायी गयी है । काव्य में कहा है कि पुनर्जन्म, उपकार्य, उपकारी-भाव भव भवान्तरों तक अपना प्रभाव दिखाते है। धीवर का नियम था कि मैं अपने जाल में आयी हई प्रथम मछली को नहीं मारूंगा। परिणामस्वरुप वही एक मछली पांच बार उसके जाल में फँसी और पाँचो बार उसने छोड़ दिया । इस पर उपकार के कारण अगले भव में पाँच बार उस मछली के जीव ने उस धीवर के प्राण बचाये । इस काव्य का भाव-पक्ष महनीय है । इस काव्य में सात लम्ब हैं तथा स्वोपज्ञ हिन्दी टीका सहित प्रकाशित है । । यह च्मपू काव्य भी महाकवि ज्ञानसागर जी ने दीक्षा के पूर्व लिखा था, जिस समय आपका नाम ब्रह्मचारी पंडित भूरामल शास्त्री था ।
6. सम्यकत्व-सार-शतकम् जैन दर्शनानुसार सम्यग् दर्शन मोक्ष मार्ग की प्रथम सीढ़ी है । अतः सम्यग् दर्शन की महिमा जैन आगमानुकूल इस काव्य में की गई है । कवि के द्वारा रचित आध्यात्मिक काव्यों में यह उच्च श्रेणी का काव्य है । सम्यग्दर्शन के बिना घोरघोर चरित्र भी मोक्ष का कारण नहीं हो सकता । कवि ने इस बात को विशेष रूप में दर्शाया है । यह काव्य 104 श्लोकों में स्वोपज्ञ हिन्दी टीका सहित प्रकाशित है । यह महाकाव्य भी महाकवि ज्ञानसागर जी ने दीक्षा के पूर्व लिखा था, जिस समय आपका नाम ब्रह्मचारी पंडित भूरामल शास्त्री था।