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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
इस वृत्तान्त को जानकर गुणपाल कौशाम्बी से उज्जपिनी नगरी मा गया। . इस प्रकार पनकीति की अपने पिता से भी भेंट हो गई। भगवान् जिनेन्द्र की पूजा पौर परोपकार में उसने सुख का अनुभव किया।
एक दिन सेठ गुणपाल पनकीर्ति एवं मनंगसेना बेश्या सहित यशोध्वज नाम के मुनि के दर्शन करने के लिए गया । गुणपाल ने मुनि से पनकीर्ति के जीवन में पाने वाले उत्थान-पतन के विषय में जिज्ञासा प्रकट की। मुनि ने बताया कि पूर्वजन्म में पनकीति मगसेन धीवर पा और श्रीमती उसकी उस जन्म की घण्टा नाम की स्त्री पो । जिस मछली को इसने पांच बार मुक्त किया था, वही इस जन्म में मनंगसेना के रूप में उत्पन्न हुई है।
मुनि मुख से अहिंसा का फल एवं जैनधर्म का उपदेश सुनकर वे सब जनधर्म में रत हो गये । धनकीति, श्रीमती मोर पनंगसेना ने जातिस्मृति की शक्ति को प्राप्त करके वैराग्य धारण कर लिया। पनकीति ने केशों को उखार रिया; पोर जिमदीक्षा ग्रहण कर ली। तपश्चरण के पश्चात् यह केवली हो गया भोर उखने सर्वार्थसिद्धि के सख को प्राप्त किया। श्रीमती पौर प्रनंगसेना ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली और अपने-अपने पाचरण के अनुसार स्वर्ग प्राप्त किया।
उपर्यक्त ग्रन्थों में पाये हुए मगसेन धीवर के कथानक को देखने से शात होता है कि श्रीज्ञानसागर विरचित 'दयोदयसम्पू' का कथानक 'वृहत्कथाकोश' के कपानक से पूर्ण समानता रखता है। चूंकि 'पाराधमाकवाकोश' में इस कथामक का अत्यधिक परिवर्तित रूप मिलता है । अतः वृहत्कथाकोश' में परिणत 'मगसेन धीवर की कषा' को ही 'दयोदयचम्पू का स्रोत मानना चाहिए, 'भारापनाकपाकोश को
अब देखना यह है कि 'बृहत्कथाकोश' में पाई हुई कथा में महाकवि ने कहाँ-कहाँ परिवर्तन किया है :(क) 'हत्वयाकोश' में मगसेन धीवर मोर घण्टा धीवरी के माता-पिता का उल्लेख है, जो 'पयाचम्पू' में नहीं है। () 'बृहत्कथाकोश' में कक्षा का प्रारम्भ बीबर के वृत्तान्त से ही होता है, किन्तु 'योदयचम्पू' में कथा का प्रारम्भ उज्जयिनी नगरी के राजा के वर्णन हुमा
(1) 'वृहत्कथाकोश' में खाली हाथ लौटे हुई मृगसेन धोबर से घण्टा का पानुपद्रव
१. ब्रह्मचारी नेमिरतात 'माराधनाकथाकोश', २०२५ २. बृहत्कथाकोश, ७२२२ ३. वही, ७१।१-२ ४. दयोदयचम्प, १११२