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________________ १०४ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन बताया गया है । दासी को श्रीभूति के घर तीन बार नहीं भेजा गया। वह एक ही बार शतरंज में जीती हुई तीनों वस्तुओं को लेकर गई पोर मन्त्री जी ने रत्न मंगाये हैं, ऐसा कहकर रत्न मांग लाई। वहाँ श्रीभूति की पत्नी के क्रोध का भी उल्मेस (1) 'बृहत्कथाकोश' में वर्णन है कि रानी ने चतुराई से रत्न पाकर राजा से चूतक्रीड़ा समाप्त करने को कहा। द्यूतकारों के चले जाने के बाद एकान्त में उसने राजा को रत्न दिए । 'श्रीसमुदत्तचरित्र' में वर्णन है कि रानी ने वे रत्न राब-. दरबार में पहुंचाये । (8) 'बृहत्कथाकोश' में बताया गया है कि धन के लोभ में श्रीभूति को निर्वासन का दण्ड मिला, किन्तु 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में केवल कठोर दण्ड दिये जाने का वर्णन (ण) 'बृहत्कथाकोश' में अपने रत्न पाने के बाद सुमित्रदत्त के परखपुर जाने का वर्णन है। किन्तु 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में दुबारा पाखण्डपुर जाने का वर्णन नहीं मिलता। (त) 'बृहत्कथाकोश' में परणीतिलक के राजा का नाम प्रतिबल है, जबकि 'श्रीममुद्रदत्त चरित्र' में इसका नाम मादित्यवेग है। (घ) 'बृहत्कथाकोश' के अनुसार श्रीपरा का विवाह कालकपुर के राजा सुदर्शन . साथ हुआ है। 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में अलकापुरी के राजा दर्शक के साथ पीपरा का विवाह हुमा है। (१) 'बृहत्कथाकोश' में वर्णित यशोधरा के पति का नाम सूर्यप्रभ एवं उसकी राजषानी का नाम प्रभातनगर है।" 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में इनका नाम सूर्यावतं मौर भास्करपुर है ।१२ १. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३४२-४ २. बृहत्कषाकोश, ७८८१-१३ ३. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४१ ४. बृहत्कथाकोश, ७८८८ ५. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ४४ ६. बृहत्कथाकोश, ७८६२ ७. वही, ७८।१५५ ८. बीसमुद्रदत्तचरित्र, ५३१७ ६. बृहत्कथाकोश, ७८।१५६-१५७ १०. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, २२० ११. बृहत्कथाकोश, ७८१५६-१६० १२. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ५२२२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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