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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत -काव्य-प्रन्यों के स्रोत
श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में वैश्यों की इस आकस्मिक मृत्यु का उल्लेख नहीं है । पितु इसमें वर्णन है कि रत्नद्वीप से रत्न अजित करके भद्रमित्र सिंहपुर पहुंचा, वहाँ पर श्रीभूति को सात रत्न सौंपकर उसकी सहमति से अपने माता-पिता को लेने पहुँच गया और उनको लेकर सिंहपुर मा गया।' (छ) 'वृहत्कथाकोश' में सुमित्रदत्त की भार्या का भी उल्लेख मिलता है, जो 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में नहीं है। (ज) 'बृहत्कथाकोश' में सुमित्रदत्त द्वारा पांच रत्नों के सौंपने का उल्लेख है, पर श्रीसमुद्रदत्तचरित्र में इनकी संख्या सात है । (झ) बृहत्कथाकोश' में रानी छ: महीनों तक समित्रदत्त की पुकार सुनती रही, तब उसने सत्य की खोज करने के लिए राजा से निवेदन किया, किन्तु श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में भद्रमित्र के पुकारने की कोई निश्चित अवधि नहीं पाई गई है। (ब) 'बृहत्कथाकोश' में राजा ने श्रीभूति को घर बुलाकर डांटकर उससे रत्नों के विषय में पूंछा है । लेकिन 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं है । (ट) बृहत्कथाकोश' में रानी की सम्मति पर राजा ने श्रीभूति के साथ जुमा खेला। लेकिन 'श्रीसमुद्रदत्तचरित्र' में रानी रामदत्ता ने राजा को दरबार लगाने के लिए कहा और मनायास उपस्थित श्रीभूति को अपने साथ शतरंज खेलने में लगा लिया। (ठ) 'वृहत्कथाकोश' में वर्णन है कि द्यूतक्रीड़ा के बीच में श्रीभूति के चिह्न को जानकर, फिर यज्ञोपवीत जीतने पर और अन्त में श्रीभूति की नामांकित अंगूठी जीतने पर रानी रामदत्ता ने तीनों वस्तुप्रों को अपनी बुद्धिमती नाम की वासी द्वारा श्रीभूति की पत्नी श्रीदत्ता के पास भेजा । श्रीदत्ता ने प्रथम दो वस्तुमों को देखने पर रत्न नहीं दिये किन्तु पति की नामांकित अंमूठी देखकर उसे विवश होकर रत्न देने पड़े।' 'श्रीसमुदत्तचरित्र' में रामदत्ता की दासी पौर श्रीभूति की पत्नी का नाम
१. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३.२४-२७ २. बृहत्कथाकोश, ७८।४६ ३. वही, ७८१५५ ४. श्रीसमुद्रदत्तचरित्र, ३॥१७ ५. बृहत्कबाकोश, ७८१५६ ६. वही, ७८१६४.६५ ७. बृहत्कयाकोश, ७८६७ ८. श्रीसमुद्रदत्तचरिष, ४१ ६. बृहत्कपाकोश, ७८।८१-८३