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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-ग्रन्थों के स्रोत
पूर्णचन्द्र था। चक्रायुष ने अपनी राज्यलक्ष्मी वज्रायुध को दे दी मोर स्वयं जिनदीक्षा ग्रहण कर ली, तत्पश्चात् मोक्ष प्राप्त कर लिया। x x x x x।' प्राराषनाकथाकोश में वरिणत 'श्रीमूतेः कथा' का सारांश
सिंहपुर में राजा सिंहसेन राज्य करता था। उसकी रानी का नाम रामदत्ता था। उनका श्रीभूति नाम का पुरोहित था, जिसने सत्यवक्ता के रूप में अपनी झूठी प्रसिद्धि फैला रखी थी। .
पद्मखण्डपुर में सुमित्र नामक श्रेष्ठ वैश्य रहता था। उसकी पत्नी सुमिमा के गर्भ से समुद्रदस नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई थी। एक बार व्यापार के लिए या सिंहपुर गया। वहां इसने श्रीभूति के पास अपने पांच रत्न रखकर रत्नद्वीप के लिए प्रस्थान किया । समुद्र के मध्य में पहुँचते ही जहाज के टूट जाने पर बहुत से यात्री मर गये, किन्तु समुद्रदत्त किसी प्रकार से बचकर सिंहपुर पहुंचा। उसने श्रीभूति से अपने रस्न मांगें। धन के लोभी श्रीभूति ने उसको पागल बताकर उसकी याचना अस्वीकृत कर दी। समुद्रदत्त ने भी यह श्रीभूति मेरे पांच रत्न नहीं दे रहा है, यह बात सारे नगर में फैला दी।
रात के समय राजमन्दिर के पास में वह छः महीने तक रोज चिल्लाकर उक्त तथ्य दोहराया करता था। उसका कथन सुनकर रामदत्ता सिंहसेन के पास गई । उसने राजा से कहा कि पुरुष पागल नहीं है । तत्पश्चात् उस रानी ने द्यूतक्रीड़ा में संलग्न श्रीभूति से कहा कि प्राज मापने क्या खाया है ? उसके बताने पर रानी ने अपनी चतुर सेविका को श्रीभूति की स्त्री के पास भेजा। लेकिन उसने सेविका को रत्न नहीं दिये । तत्पश्चात् रानी ने श्रीभूति के नाम से युक्त अंगूठी जीतकर पुनः दासी को भेजा । लेकिन ब्राह्मणी ने उन रत्नों को लोभ के कारण नहीं दिया। पुनः श्रीभूति के यज्ञोपवीत के सहारे दासी ने रत्न मांगें, तब उरकर उसने उन रत्नों को दे दिया।
रानी ने वे रत्न राजा को दिखाये । राजा सिंहसेन ने उन रत्नों को अन्य रत्नों से मिलाकर वणिवपुत्र समुद्रदत्त से कहा कि जो तुम्हारे रत्न हैं, उन्हें ले लो। समुद्रदत्त ने रत्नों में से अपने रत्न उठा लिए। सिंहसेन ने उसके पापरण पर प्रसन्न होकर उसको श्रेष्ठिपद दे दिया। तत्पश्चात् श्रीभूति के दुराचरण से रुष्ट राजा ने धर्माधिकारियों से पूछा कि इसको क्या दण्ड दिया जाय? उनकी सम्मति के अनुसार श्रीभूति का सब धन ले लिया गया; तोस पहलवानों ने उस पर मुष्टिप्रहार किया और कांसे के बर्तन में रखकर ताजा गोबर खिलाया गया। नगरवासियों से इस प्रकार दण्डित होकर श्रीभूति मन्तान पूर्वक मरा। .
उपर्युक्त दोनों ग्रन्थों में वर्णित कथा को जब हम श्रीज्ञानसागर द्वारा १ हरिषेणाचार्यविरचित बृहत्कथाकोश, श्रीभूतिकथानकम्, श्लोक संस्था
२८-१८५ २. ब्रह्मचारीनेमिक्त्तविरचित मारापनाकपाकोश, २१२७