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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य-ग्रन्थों के स्रोत
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नाम की देवी को जयकुमार के पास भेजा। उस देवी की चेष्टानों का जयकुमार पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। ऐसा देखकर कृत्रिम क्रोध से युक्त वह देवी जयकुमार को उठाकर जाने लगी तो सुलोचना ने उसकी भर्त्सना की। सुलोचना के शील के प्रभाव को सहने में असमर्थ होकर वह प्रदृश्य हो गई और अपने स्वामी रविप्रभ देव के पास पहुंची। रविप्रभ देव जयकुमार से प्रभावित होकर उसके पास आया । क्षमायाचनापूर्वक बड़े-बड़े रत्नों से जयकुमार की पूजा करके स्वर्ग चला गया । इसके पश्चात् प्रपने नगर लौटकर जयकुमार ने सुलोचना के साथ बहुत दिन बिताये ।
एक दिन प्रात्मज्ञानी जयकुमार ने श्री आदिनाथ तीर्थङ्कर की वन्दना की श्रौर उनके उपदेश से जब धर्म का स्वरूप जाना तो शिवंकरा महादेवी से उत्पन्न पने पुत्र अनन्तवीर्य का राज्याभिषेक कर दिया और अपने छोटे भाई विजय, जयन्त, संजयन्त एवं रविकीर्ति, रविजय, प्ररिदम, प्ररिजय इत्यादि चक्रवर्ती भरत के पुत्रों के साथ दीक्षा धारण कर ली। वह भगवान् ऋषभदेव का ७१व गरणधर बन गया। पति के वियोग से व्याकुल सुलोचना ने चक्रवर्ती की पट्टरांनी सुभद्रा के समझाने पर ब्राह्मी प्रार्थिका के समीप दीक्षा धारण कर ली; भोर बहुत समय तक तप करने के पश्चात् प्रच्युत स्वर्ग के अनुत्तर विमान में देवी के रूप में उत्पन्न हुई (यहाँ सैंतालिसव पर्व समाप्त हो जाता है) । '
(घ) मूलकथा में परिवर्तन और परिवर्धन
महापुराण में वरिणत जयकुमार की कथा धौर जयोदय महाकाव्य की कथा का जब हम तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तो ज्ञात होता है कि कविवर श्रीज्ञानसागर ने काफी हेर फेर के साथ अपने महाकाव्य में महापुराण की कथा वर्णित की है । उनके द्वारा किए गए परिवर्तन इस प्रकार हैं :
(क) 'महापुराण' में सर्वप्रथम जयकुमार के माता-पिता भोर पितृव्यों का परिचय दिया है, जबकि जयोदय में जयकुमार के पिता का तो नाम एकाध स्थलों पर प्राया भी है परन्तु माता एवं पितृव्यों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता ।
(ख) 'महापुराण' में बताया गया है कि जयकुमार के पिता सोमप्रभ श्रोर चाचा श्रेयांस के संन्यास लेने पर जयकुमार ने हस्तिनापुर का राज्य प्राप्त किया । किन्तु 'जयोदय' में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता ।
(ग) वनक्रीड़ा के लिए गये हुए जयकुमार ने जिस मुनि से धर्मोपदेश सुना,
१. जिनसेनाचार्य गुणभद्राचार्यकृत महापुराण (प्रादिपुराण भाग-२), पर्व ४३ से
४७ तक ।
२. महापुराण ( प्रादिपुराण भागग-२), ४३।७७-८२ ३. जयोदय ६।११५, ७३४
४. महापुराण (मादिपुराण भाग-२), ४३६४.८७