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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य --- एक अध्ययन द्वितीय लम्ब मुनि के उपदेश को मन में धारण करते हुए मृगसेन घीवर शिप्रा नदी के तट पर पहुँचा और उसने नदी के जल में अपना जाल बिछा दिया। पहली बार उसके जाल में एक रोहित मछली फंसी; उसे उसने चिह्नित करके नदी में छोड़ दिया। लेकिन जब-जब वह जाल फैलाता, तब-तब वही मछली उसके जाल में फंस जाती और अपनी प्रतिज्ञानुसार वह उग मछली को पानी में छोड़ता जाता। जब बार-बार प्रयत्न करने पर भी वही मछली फंगो तो वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो. गया । एक पोर अहिंसाव्रत का पालन करना या; ग्रोर दुर्ग मोर स्त्री-पुत्रादिकों के भरण-पोषरण का प्रश्न था । अन्त में वह निराश होकर खाली हाय हो कर बन्न पड़ा । पति को देखकर घण्टा ने विलम्व का और स्वाली हाय माछा : पत्नी के पूछने पर घीवर ने मर्ग बनान मोर मायु पृरुप के समान आचरण करने के अपने दृढ़ निश्चय में भी सेवन कर दिया । घण्टा धीवरी ने कहा कि गहस्थ होकर मात्रु के ममान प्राची का प्रावश्यकता है ? मगसेन के बहुत समझाने पर भी घण्टा के ऊपर का प्रभाव नहीं पड़ा। क्रोधाविष्ट होकर उसने अपने पति को घर से बाहर निकाल दिया। अपमानित मृगसेन एक निर्जन धर्मशाला में गया और वहाँ पर विश्राम करने के लिए लेट गया। इसी समय एक भयंकर मां न प्राकर उसे डस लिया, जिससे तत्काल ही उसकी मृत्यु हो गई। वह मगसेन धीवर ही इस बालक के रूप में सार्थवाह के घर जन्मा है। पति मगसेन को घर से निकालकर घण्टा अपनो निर्दयता पर पश्चात्ताप करने लगी। व्याकुल होकर वह उसे ढूंढती हुई उसी धर्मशाला में पहुंची । वहाँ अपने पति को मरा हुमा जानकर वह सिर पीट-पोट कर रोने लगी। शोकावेग कम हो जाने पर उसने अहिंसाव्रत का पालन करने का निश्चय किया। इसी समय उसी सर्प ने जिसने मगसेन को काटा या. घण्टा को भी काट लिया। वही घण्टा धीवरी यहाँ गुणपाल की लड़की विषा हुई है। पूर्वजन्म के संयोग के कारण इनका पुनः संयोग भी होगा। तृतीय लम्ब सेठ गुणपाल उन दोनों (गुरु-शिष्य) की वार्ता सुनकर पाश्चर्यचकित हो गया। तब उसने सोमदत्त नामक उस बालक को मारने का निश्चय किया। उसने सोचा कि यद्यपि मुनिजनों की कही गई बात सत्य ही होती है, तथापि इस सम्बन्ध में प्रयत्न तो करना ही गहिए। सेठ ने सोमदत्त नामक उस बालक को मारने के लिए एक चाण्डाल को नियुक्त किया। चाण्डाल ने सेठ से पारिश्रमिक लेकर उसे मारने का वचन तो
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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