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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य-ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार नवम सर्ग मुनि हो जाने पर चक्रायुध ने बाह्य वस्तुमों का परित्याग कर दिया। मयूरपिच्छी और कमण्डलु को भी उदासीन भाव से रखा। सत्य, क्षमा, अहिंसा और ब्रह्मचर्य का पालन किया । प्रात्मध्यान में अपने को रमाया । नाशवान् शरीर की चिन्ता छोड़कर नित्यप्रति उपवास किये । रागद्वेष से मन विमुक्त कर दिया। अन्त में, उसको कैवल्य ज्ञान प्राप्त हो गया। अपने सामीप्य से अपने पास-पास के वातावरण को पाप से सर्वथा रहित कर दिया। (ङ) दयोदय चम्पू का संक्षिप्त कथासार प्रथम लम्ब प्रार्यावर्त के मालव नामक देश में उज्जयिनी नामक नगरी है। एक समय उस नगरी में वषभदत्त नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम वृषभदत्ता था। वृषभदत्त के ही शासन काल में गुणपाल नाम का अति वैभवशाली राजसेठ था। उसकी पत्नी का नाम गुणश्री था। उनकी विषा नाम की एक पुत्री यो। ___एक बार गुणपाल ने भोजन करने के पश्चात् जूठे बर्तनों को द्वार पर डाल दिया । उमो समय एक सुन्दर बालक उन पात्रों में पड़ी हुई जूठन खाकर प्रपनी भूख मिटाने लगा। ऐसे समय में एक मुनि अपने शिष्य के साथ वहां से निकले । मुनि ने अपने शिष्य के समक्ष 'यह बालक गुणपाल का जामाता होगा-' ऐसी माश्चर्यजनक भविष्यघोषणा कर दी। मुनि ने यह भी बताया कि 'यह इसी नगर के सार्थवाह श्रीदत्त की पत्नी श्रीमती के गर्भ से जन्मा है; किन्तु पूर्वजन्म में किये गये पापों के फलस्वरूप यह इस समय अपने माता-पिता के स्नेह से वंचित है।' शिष्य के जिज्ञास होने पर मुनि ने उस वालक का पूर्ववृत्तान्त सुनाया : प्रवन्ती प्रदेश में शिप्रा नामक नदी के तट पर शिशपा नामक छोटी सी वस्ती है। उसमें मगसेन नामक एक धीवर रहता था। उसके माता-पिता का नाम भवश्री पौर भवदेव था तथा उसकी पत्नी का नाम घण्टा था। एक दिन वह मछलियां पकड़ने जा रहा था । मार्ग में उसने पार्श्वनाथ के मन्दिर में जनसमूह से घिरे हुए एक अहिंसकोपदेशक दिगम्बर साधु को देखा। उस साधु के अहिंसापरक व्याख्यान से प्रभावित होकर उसने मुनि के चरणों को पकड़कर अपने पापमय जीवन से उद्धार हेतु उपाय पूछा। मुनि ने उसे समझाया कि तुम यह नियम बना लो कि मछलियां पकड़ते समय, जो मछली सबसे पहने जाल में फंसे, उसे छोड़ देना है । धीवर ने इस बात को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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