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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य- एक प्रध्ययन भद्रमित्र के बहुत प्राग्रह करने पर पिता ने कहा - 'तुम्हारा जाना मैं तो फिर भी सहन कर लूंगा, पर तुम्हारी माता को यह कैसे सहन होगा ? पिता की बात सुनकर भद्रमित्र माता के समीप धनुमति प्राप्त करने के लिए गया । अपने एकमात्र पुत्र का विदेश जाना सुनकर पहले तो भद्रमित्र की माता विचलित हुई; किन्तु भद्रमित्र को दृढ़ विचार वाला जानकर माता को अनुमति देनी ही पड़ी । ૪૬ माता-पिता से अनुमति पाकर भद्रमित्र अपने साथियों सहित रत्नद्वीप पहुँचा प्रोर वहाँ उसने सात रत्न प्राप्त किये। इसके पश्चात् भद्रमित्र सिंहपुर पहुँचा । उस समय सिंहपुर में सिंहसेन राजा राज्य करता था। राजा की पत्नी का नाम था रामदत्ता । राजा के मंत्री का नाम श्रीभूति था, जिसने प्रपनी झूठी सत्यवादिता का समाचार चारों ओर फैला रखा था। उसने अपने गले में एक छुरी इसलिये बाँध रखी थी कि यदि कभी उसके मुंह से असत्य बात निकली तो वह उसी छुरी से श्रात्महत्या कर लेगा । अपने इस झूठे गुण के कारण ही राजा से उसने 'सत्यघोष' नाम भी पा लिया था । सिंहपुर पहुँचकर भद्रमित्र का परिचय इसी सत्यघोष मन्त्री से हुप्रा । भद्रमित्र ने सत्यघोष को बहुत सा पुरस्कार देकर उससे अपने माता-पिता को सिंहपुर में ही बसाने की श्राज्ञा माँगी । सत्यघोष ने श्राज्ञा दे दी । भद्रमित्र अपने सातों रत्न सत्यघोष को सौंपकर माता-पिता को लेने चला गया । सिहपुर लोटकर भद्रमित्र ने सत्यघोष से अपने रत्न माँगे तो उसने यह स्वीकार ही नहीं किया कि भद्रमित्र उसे रत्न सौंप गया था। जब भद्रमित्र ने प्रक प्रकार से अपनी बात को प्रमाणित करने की चेष्टा की, तो पहरेदारों ने उसे पागल कहकर बाहर निकाल दिया । सत्यघोष के प्रभाव के कारण राजदरबार में भी किसी ने उसकी बात नहीं सुनी । निराश होकर भद्रमित्र एक निश्चित समय पर, वृक्ष पर चढ़कर सत्यघोष की झूठी कीति की निन्दा करता था और उसकी प्रतिष्ठा नष्ट होने का शाप देसर या 1. Q उसके विलाप की रानी ने भी सुना, तो राजा से उसने कहा कि यह पुरुष जो सत्यघोष की निन्दा करता है, उसका कारण पागलपन नहीं, अपितु सत्यघोष से सम्बन्धित कोई रहस्य है । प्रतएव रहस्योद्घाटन होना चाहिए। मैं वास्तविकता को जानना चाहती हूँ । इस काम की सिद्धि के लिए प्राप राजदरबार लगाकर वहीं बैठें | सुजा के जाने के बाद, अनायास ही उपस्थित हुए सत्यघोष को रानी ने श्रादरसहित शतरंज खेलने के लिए ग्रामन्त्रित किया। अपनी बालों से उसे भुलाने में
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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