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गमन की यह बात प्रकारान्तर से जैन परम्परा में 'कप्प' (दशाश्रुतस्कन्ध 5/68), निसीह (निशीथ 10/31-34) और दसवेयालिय (दशवैकालिक 8/28) में भी उपलब्ध है।277 सामान्यतया यह अवधारणा उस युग के सभी श्रमण - ब्राह्मण परिव्राजकों में प्रचलित थी। इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से श्रीगिरि के विचारों की प्रामाणिक जानकारी होते हुए भी हमें उनके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
38. सारिपुत्र (सातिपुत्त) ऋषिभाषित का अड़तीसवाँ अध्याय सारिपुत्र (सातिपुत्त) अर्हत् बुद्ध के उपदेशों से सम्बन्धित है। ये सातिपुत्त निश्चय ही बौद्ध परम्परा के सारिपुत्र ही हैं। इनके नाम के साथ लगा 'बुद्ध' विशेषण और इनके विचारों की बौद्ध परम्परा से समानता इस तथ्य के महत्त्वपूर्ण प्रमाण हैं। ऋषिभाषित के अतिरिक्त सारिपुत्र का उल्लेख आवश्यकचूर्णि में प्राप्त होता है।278 उसमें इन्हें बुद्ध का अनुयायी बताया है। इसी प्रकार आचारांग शीलाङ्क टीका में भी इनका उल्लेख है।279 इसके अतिरिक्त साईदत्त (स्वातिदत्त) नामक चम्पा के निवासी एक ब्राह्मण का भी उल्लेख मिलता है। महावीर ने उसकी शाला में एक चतुर्मास किया था।280 किन्तु, इनकी सातिपुत्त या सारिपुत्त के साथ एकरूपता स्थापित कर पाना कठिन है।
सारिपुत्र के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण बौद्ध परम्परा में उपलब्ध है। 'डिक्शनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स्' में इनके सम्बन्ध में पालि साहित्य के आधार पर जो विवरण उपलब्ध है वह भी 10 पृष्ठों में है।281 विस्तार भय से वह सब विवरण यहाँ दे पाना कठिन है। हम मात्र कुछ प्रमुख तथ्यों का ही उल्लेख करेंगे। बौद्ध परम्परा में इन्हें बुद्ध के दो अग्र श्रावकों में स्थान देकर इनका सम्मान किया गया है। इन्हें नालक ग्राम के ब्राह्मण वङ्गन्त के पुत्र कहा गया है। इनकी माता का नाम रूपसारि था। अपनी माता के नाम पर ये सारिपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। बुद्ध ने इन्हें धर्म-सेनापति और महाप्रज्ञावान कहा था। बौद्ध धर्मसंघ में प्रवेश करने के पूर्व ये सञ्जय के शिष्य थे। सञ्जय का उल्लेख भी ऋषिभाषित में अर्हत् ऋषि के रूप में हुआ है।282 बरुआ ने इन सञ्जय को बुद्ध के समकालीन छह तीर्थंकरों में से एक सञ्जयवेलट्ठिपुत्त माना है।283 मेरी दृष्टि में भी यही सञ्जय सारिपत्र के पूर्व गुरु होंगे, जिन्हें सारिपुत्र ने बुद्ध से मिलने के लिए आमन्त्रित किया था, किन्तु इन्होंने इससे इनकार कर दिया था। पालि साहित्य में सारिपुत्र 98 - इसिभासियाई सुत्ताई