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________________ ज्ञातव्य है कि यही विवरण हमें पालि साहित्य में भी मिलता है। जहाँ बुद्ध किसी भिक्षु से पूछते हैं कि यदि कोई तुम्हारी आलोचना करता है तो तुम क्या करोगे? और वह कहता है कि यह सोचूंगा कि वह मेरी आलोचना ही तो करता है, मुझे पीटता तो नहीं है। इसी प्रकार समग्र चर्चा वहां भी दोहराई गयी है। अन्तर मात्र यह है कि वहाँ चर्चा भगवान बुद्ध और एक भिक्षु के मध्य है, जबकि प्रस्तुत अध्याय में यह ऋषिगिरि के उपदेश के रूप में वर्णित है। इसके अतिरिक्त इस अध्याय में लोक के स्वरूप को जानकर पाँच महाव्रत से युक्त, कषायरहित, संयमी एवं जितेन्द्रिय बनने का निर्देश किया गया है। भोगों में आसक्त दीन व्यक्ति कभी जीवन की आकांक्षा करता है, तो कभी मृत्यु की और इस प्रकार वह अपना ही नाश करता है। जबकि जो काम-वासनाओं में लुब्ध नहीं होता है, वह छिन्न-स्रोत अनास्रवी मुक्ति को प्राप्त करता है। ऋषिगिरि का यह उपदेश सामान्य रूप में अन्यत्र भी उपलब्ध है, अतः उपदेश के आधार पर उनकी किसी विशिष्ट अवधारणा का ज्ञान नहीं होता है। 35 उद्दालक ऋषिभाषित के 35वें अध्याय में उद्दालक (अद्दालअ) के उपदेश संकलित हैं। जैन आगमिक एवं आगमेतर साहित्य में ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी उद्दालक का उल्लेख नहीं मिलता है। वस्तुतः उद्दालक एक औपनिषदिक ऋषि हैं। ये अरुण औपवेशि गौतम के पुत्र थे। इनका प्रसिद्ध नाम उद्दालक-आरुणि है। अरुण के पुत्र होने से उन्हें आरुणि कहा जाता है। इनका उल्लेख शतपथब्राह्मण, कौषीतकिब्राह्मण, ऐतरेयब्राह्मण, बृहदारण्यकोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद् आदि में मिलता है।264 ये अपने पिता अरुण, मद्रवासी, पतंचलकाप्य के शिष्य थे। इनके पुत्र श्वेतकेतु थे। यद्यपि इन्हें नचिकेता का भी पिता कहा गया है, किन्तु श्री सूर्यकान्त ने वैदिककोश में इस सम्बन्ध में सन्देह प्रकट किया है।265 उद्दालक का उल्लेख पालि साहित्य के उद्दालक जातक में मिलता है।266 उसके अनुसार ये बनारस के राजा के पुरोहित के पुत्र थे, जो एक दासी से उत्पन्न हुए थे। पश्चात् शिक्षा हेतु तक्षशिला गये और शिक्षित होकर संन्यासियों के एक वर्ग के आचार्य बन गये। इन्होंने वाराणसी तक की यात्रा की और जनता में पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित की। किन्तु, पुरोहित ने इनके छद्म जीवन की यथार्थता को जानकर संन्यास छोड़ने को विवश किया और अपने अधीन पुरोहित बना दिया। 94 इसिभासियाई सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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