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________________ जहाँ तक ऋषिभाषित में प्रतिपादित अरुण ऋषि के उपदेशों का प्रश्न है, ये कहते हैं कि व्यक्ति के भाषा-व्यवहार और कर्म (आचरण) के आधार पर ही उसके पण्डित या मूर्ख होने का निर्णय किया जा सकता है। अशिष्ट वाणी, दुष्कर्म और कार्य - अकार्य के विवेक का अभाव — ये मूर्ख के लक्षण हैं। इसके विपरीत शिष्टवाणी, सुकृतकर्म और धर्म-अधर्म का विवेक पण्डितजन के लक्षण हैं। इसके साथ ही इसमें यह भी बताया गया है कि व्यक्ति पर संसर्ग का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इस तथ्य को अनेक उदाहरणों से पुष्ट भी किया गया है । अन्त में यह कहा गया है कि जितेन्द्रिय और प्रज्ञावान साधक को समत्व और अहिंसा को सम्यक् प्रकार जानकर कल्याणकारी मित्रों का ही संसर्ग करना चाहिए 262 | 34. ऋषिगिरि ऋषिभाषित के चौतीसवें अध्याय में ऋषिगिरि नामक ब्राह्मण परिव्राजक के उपदेशों का संकलन है। ऋषिगिरि नामक ब्राह्मण परिव्राजक का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होता है। यद्यपि ऋषिदत्त, ऋषिगुप्त आदि नामों के उल्लेख मिलते हैं, किन्तु इनकी ऋषिगिरि से कोई संगति बिठा पाना कठिन है। इसी प्रकार बौद्ध और वैदिक परम्परा में भी हमें ऋषिगिरि नामक ब्राह्मण परिव्राजक का कोई उल्लेख नहीं मिला । अतः इनके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में किसी प्रकार की जानकारी दे पाना कठिन है। जहाँ तक ऋषिगिरि के उपदेशों 263 का प्रश्न है, वे मूर्खो या दुष्टजनों द्वारा दिये गये कष्टों को समभावपूर्वक सहन करने का निर्देश देते हैं। वे कहते हैं कि यदि कोई परोक्ष में निन्दा करता है, तो यह सोचकर समभाव धारण करना चाहिये कि वह प्रत्यक्ष में तो आलोचना नहीं करता है। यदि कोई प्रत्यक्ष में आलोचना करता है, तो यह सोचना चाहिए कि वह केवल शब्दों से निन्दा करता है, हमारे शरीर को तो पीड़ा नहीं पहुँचाता है। यदि कोई पीड़ा पहुँचाता है, तो यह सोचना चाहिये कि वह हमारा शस्त्र से अंग-भंग तो नहीं करता है। यदि कोई अंग-भंग करता है, तो सोचना चाहिए कि वह अंग-भंग करता है, किन्तु प्राण -हरण तो नहीं करता है। यदि वह प्राण हरण करता है, तो यह सोचना चाहिए कि वह प्राण ही लेता है धर्मभ्रष्ट तो नहीं करता है। अज्ञानी तो मूर्ख स्वभाव के होते हैं, उन्हें हिताहित का ज्ञान नहीं होता है, ऐसा समझकर उनके प्रति समभाव धारण करना चाहिए। ऋषिभाषित : एक अध्ययन 93
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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