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जैन साहित्य के अतिरिक्त वर्द्धमान महावीर का उल्लेख हमें पालि बौद्धसाहित्य में भी मिलता है। इसमें इनका उल्लेख 'निग्गंठ नातपुत्त' के रूप में हुआ है। इन्हें बुद्ध का ज्येष्ठ समकालीन माना गया है । यद्यपि प्रचलित बुद्ध निर्वाण संवत् और वीर निर्वाण संवत् के आधार पर वर्द्धमान महावीर से बुद्ध लगभग 30 वर्ष छोटे सिद्ध होते हैं । उनको बुद्ध के समकालीन छह तीर्थङ्करों में माना गया है। पालि साहित्य में उनके सम्बन्ध में जो उल्लेख मिलते हैं उस पर पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने पर्याप्त रूप से विवेचन किया है, अतः मैं उस पर विशेष चर्चा करना नहीं चाहता। मैं केवल थेर गाथा अट्ठकथा 229 का एक सन्दर्भ अवश्य प्रस्तुत करना चाहूँगा जो विद्वानों के लिए उपेक्षित रहा है। थेर गाथा की अट्ठकथा में वद्धमाण थेर को वैशाली का लिच्छवि वंशीय राजकुमार कहा गया है। यह एक ऐसा तथ्य है जो उनकी संगति वर्द्धमान महावीर के साथ बैठाता है। मैं तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि थेरगाथा के सभी थेर बौद्ध परम्परा के नहीं हैं, उसमें बुद्ध के पूर्ववर्ती अनेक लब्ध-प्रतिष्ठ श्रमणों के उद्गार सम्मिलित हैं। यद्यपि साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण अट्ठकथाओं में उन्हें बौद्ध परम्परा से जोड़ने का प्रयत्न किया गया है। जिस प्रकार जैन परम्परा में ऋषिभाषित और उत्तराध्ययन में अन्य श्रमण परम्परा के ऋषियों के विचार संकलित हैं। उसी प्रकार थेर गाथा में भी अन्य श्रमणपरम्परा के ऋषियों के उपदेश संकलित हैं। इसी आधार पर मेरी यह मान्यता है। कि ऋषिभाषित के वद्धमाण थेर और थेरगाथा के वद्धमाण थेर एक ही व्यक्ति हैं। साथ ही पालि-त्रिपिटक के निग्गंठ नातपुत्त और जैन परम्परा के वर्द्धमान महावीर भी ऋषिभाषित और थेर गाथा के वर्द्धमान ही हैं। इस आधार पर वर्द्धमान की ऐतिहासिकता भी सुस्पष्ट है । थेरगाथा में भी वर्द्धमान थेर ने राग के प्रहीण की वही बात कही है, जो आचारांग और उत्तराध्ययन में भी कही गई है।
30. वायु
ऋषिभाषित का तीसवाँ अध्याय वायु नामक ऋषि से सम्बन्धित है | 230 ऋषिभाषित के अतिरिक्त वायु नामक ऋषि का उल्लेख जैनागम साहित्य में अन्यत्र उपलब्ध नहीं है । यद्यपि भगवान् महावीर के 11 गणधरों में तीसरे गणधर का नाम वायुभूति है, 231 किन्तु वायुभूति और वायु ऋषि एक ही व्यक्ति है, यह कह पाना कठिन है, क्योंकि इस सम्बन्ध में कोई अन्तर या बाह्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। बौद्ध परम्परा में वायु का उल्लेख मात्र एक देवता के रूप में हुआ है। 86 इसिभासियाई सुत्ता