________________
ब्राह्मण वर्ग में प्रतिपादित ब्राह्मणों के लक्षणों से भी इनकी समानता है। यद्यपि यहाँ केवल छह गाथाओं में इन लक्षणों का उल्लेख है जबकि उत्तराध्ययन और धम्मपद में अपेक्षाकृत अधिक विस्तार से इनका उल्लेख पाया जाता है। फिर भी शाब्दिक अन्तर के अतिरिक्त विषय वस्तु की दृष्टि से इनमें कोई अन्तर नहीं है। इसके अतिरिक्त इसी अध्याय में आध्यात्मिक कृषि का विवेचन है। यह विवेचन ऋषिभाषित के 32वें पिंगीय नामक अध्याय में तथा बौद्ध ग्रन्थ सुत्तनिपात205 के कसी-भारद्वाज सुत्त में भी मिलता है। इस अध्याय के अन्त में कहा गया है कि जो इस प्रकार की सर्व प्राणियों की दया से युक्त कृषि करता है, वह चाहे ब्राह्मण हो या क्षत्रिय, वैश्य हो या शूद्र हो—वह विशुद्धि को प्राप्त करता है। ज्ञातव्य है कि ऋषिभाषित के 32वें पिंगीय नामक अध्याय की गाथा क्रमांक 4 भी शब्दशः यही है।
जैन परम्परा के अतिरिक्त बौद्ध परम्परा में भी मातङ्ग का उल्लेख मिलता है। बौद्ध परम्परा में मातङ्ग को प्रत्येकबुद्ध कहा गया है और इन्हें राजगृह का निवासी बताया गया है। मातङ्ग जातक206 के अनुसार इनका जन्म चाण्डाल कूल में हुआ था और इन्होंने ब्राह्मणों के जाति अहंकार को नष्ट किया था। ऋषिभाषित में इनके उपदेशों में सच्चे ब्राह्मण के स्वरूप का प्रतिपादन भी यही सूचित करता है कि ये जन्मना आधार पर ब्राह्मण वर्ग की श्रेष्ठता को अस्वीकार करते थे। ___ मातङ्ग शब्द चाण्डाल जाति का सूचक है। द्रष्टव्य है कि बौद्ध परम्परा के मातङ्ग जातक की कथा उत्तराध्ययन207 के हरकेशी नामक 12वें अध्याय से समरूपता रखती है।
ब्राह्मण परम्परा में महाभारत208 में भी हमें मातंग ऋषि का उल्लेख प्राप्त होता है। महाभारत में उपलब्ध मातङ्ग मुनि के उपदेशों का सारतत्त्व यही है कि वीर पुरुष को सदैव ही प्रयत्न करते रहना चाहिए। उसे किसी के सामने नतमस्तक नहीं होना चाहिए, क्योंकि उद्योग करना ही पुरुष का कर्तव्य है। वीर पुरुष चाहे असमय में नष्ट भले ही हो जाये, परन्तु कभी भी अपना सिर नहीं झुकाते। जब हम मातङ्ग के इस उपदेश की तुलना ऋषिभाषित के उपदेश से करते हैं तो दोनों में एक समानता तो स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है और वह यह कि दोनों में व्यक्ति को अपने कुलधर्म के अनुसार आचरण करने का निर्देश है। ऋषिभाषित में मातङ्ग ब्राह्मणों के शस्त्रजीवी होने एवं राजा तथा वणिकों के यज्ञ-याग में प्रवृत्त होने पर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं कि यह तो ऐसा ही है मानो धन्धे से जुड़े हुए हैं। इस अध्याय में मुख्य रूप से यह बताया गया है कि ब्राह्मण न तो
ऋषिभाषित : एक अध्ययन 81