SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध परम्परा199 में अम्बट्ठ माणवक का उल्लेख मिलता है। बौद्ध परम्परा के अनुसार अम्बट्ट पोष्कर साती ब्राह्मण के शिष्य थे तथा इनका भगवान् बुद्ध से ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ था। जहाँ एक ओर अम्बट्ठ शाक्यों को निम्न जाति का बताते थे, वहीं दूसरी ओर अन्य लोग अम्बट्ट को दासी पुत्र कहकर अपमानित करते थे। इस समग्र चर्चा के उपसंहार के रूप में बुद्ध जातिवाद या वर्ण व्यवस्था में आचरण की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करते हैं। इस प्रसंग में मुख्य रूप से यह द्रष्टव्य है कि अम्बट्ट को कृष्ण ऋषि की वंश परम्परा का अर्थात् काष्र्णायन कहा गया है। ज्ञातव्य है कि औपपातिक में ब्राह्मण परिव्राजकों की एक परम्परा का नाम 'कण्ह' है। हो सकता है कि अम्बटु सुत्त में उल्लिखित कृष्ण ऋषि ऋषिभाषित के वारिसव कण्ह हों। जहाँ तक वैदिक परम्परा200 का प्रश्न है, हमें अम्बष्ठ का उल्लेख एक जाति के रूप में ही मिलता है, जो कि ब्राह्मण पिता और वैश्य स्त्री द्वारा उत्पन्न हुई थी। बौद्ध परम्परा में इस जाति को क्षत्रिय पिता और दास सम्भवतः शूद्र स्त्री से उत्पन्न सन्तान कहा गया है। जहाँ तक अम्बड़ या अम्बष्ठ के एक ऋषि के रूप में उल्लिखित होने का प्रश्न है, बौद्ध और वैदिक परम्परा हमें कोई सूचना प्रदान नहीं करती। ऋषिभाषित के अम्बड़ नामक अध्याय में योगन्धरायण ऋषि का भी उल्लेख आता है। इनके सम्बन्ध में जैन परम्परा में ऋषिभाषित के अतिरिक्त आवश्यकचूर्णि201 में भी विवरण प्राप्त होता है। आवश्यकचूर्णि में इन्हें उदायन राजा का अमात्य कहा गया है। अतः अम्बड़ और योगन्धरायण निश्चित रूप से महावीर के समकालीन थे। 26. मातङ्ग ऋषिभाषित202 के छब्बीसवें अध्याय में मातङ्ग नामक अर्हत् ऋषि के उपदेशों का संकलन है। जैन परम्परा में ऋषिभाषित के अतिरिक्त मातङ्ग का उल्लेख अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होता है। यद्यपि आवश्यक में मातङ्ग यक्ष का उल्लेख है, किन्तु उनका ऋषिभाषित के मातङ्ग से सम्बन्ध स्थापित कर पाना कठिन है। ऋषिभाषित के मातङ्ग नामक अध्याय में सर्वप्रथम सच्चे ब्राह्मण के लक्षण बताये गये हैं, ये लक्षण उत्तराध्ययन203 के पच्चीसवें अध्याय में दिये गये सच्चे ब्राह्मण के लक्षणों से समानता रखते हैं। इसी प्रकार धम्मपट204 के 80 इसिभासियाई सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy