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________________ गया है, किन्तु उपलब्ध विवरणों के अभाव में निश्चयात्मक रूप से इनके बारे में कुछ कह पाना कठिन है। बौद्ध परम्परा के अतिरिक्त बृहदारण्यक उपनिषद् में भी आचार्यों की जो वंश-सूची दी गयी है उसमें कश्यप के शिष्य हरित कश्यप का उल्लेख है।13 मेरी दृष्टि से यह सम्भव है कि बृहदारण्यक उपनिषद् में वर्णित हरित ऋषि ही ऋषिभाषित के हरिगिरि हो। यद्यपि स्पष्ट प्रमाण के अभाव में इसे भी निश्चयात्मक रूप से स्वीकार कर पाना कठिन है। 25. अम्बड़ परिव्राजक ऋषिभाषित का 25वां194 अध्याय अम्बड़ परिव्राजक का है। जैन आगम साहित्य में इनका उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त समवायाङ्ग,195 भगवती,196 औपपातिक17 एवं स्थानाङ्ग198 में भी मिलता है। समवायाङ्ग में इन्हें आगामी उत्सर्पिणी कालचक्र में होने वाला तीर्थङ्कर कहा गया है। भगवतीसूत्र के अनुसार ये श्रावस्ती के निवासी एक परिव्राजक थे। महावीर से चर्चा के उपरान्त अम्बड़ संन्यासी द्वारा श्रावक धर्म ग्रहण करने सम्बन्धी उल्लेख भगवती और औपपातिक सूत्र में मिलता है। इससे यह फलित होता है कि महावीर के धर्म के प्रति निष्ठावान होकर भी इन्होंने अपनी स्वतन्त्र परम्परा को बनाये रखा था। औपपातिक से यह भी ज्ञात होता है कि ब्राह्मण परिव्राजकों की एक शाखा उनके नाम पर प्रसिद्ध थी जो सम्भवतः औपपातिक के वर्तमान स्वरूप के निर्धारण अर्थात् ईसा की चौथीपांचवीं शती तक चलती रही होगी। इसी प्रकार स्थानाङ्ग के अनुसार अन्तकृत्दशा का दसवाँ अध्याय अम्बड़ परिव्राजक से सम्बन्धित था, यद्यपि वर्तमान अन्तकृत्दशा में यह अध्याय (दशा) अनुपलब्ध है। औपपातिक में इस सम्बन्ध में भी विस्तार से चर्चा की गई है कि अम्बड़ आदि इन ब्राह्मण परिव्राजकों की कल्प्य-अकल्प्य अर्थात् आचार व्यवहार की क्या व्यवस्था थी। यद्यपि विस्तार भय से इसकी समग्र चर्चा यहाँ अपेक्षित नहीं है। औपपातिक में इस सम्बन्ध में विस्तार से विवरण उपलब्ध है कि अम्बड़ परिव्राजक और उनके शिष्यों ने किस प्रकार बिना दिये जल ग्रहण नहीं करने के अपने नियम के पालनार्थ पुरिमताल नगर की ओर जाते हुए मार्ग के एक वन खण्ड में गंगा नदी के किनारे ग्रीष्म ऋतु में बालू की शय्या पर संलेखना ग्रहण कर अपने प्राण त्याग दिये। तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से यह विवेचन महत्त्वपूर्ण है और अम्बड़ परिव्राजक की आचार-परम्परा की एक विस्तृत झाँकी प्रस्तुत करता है। जैन आगम साहित्य में सर्वत्र ही अम्बड़ परिव्राजक का आदर के साथ उल्लेख हुआ है। ऋषिभाषित : एक अध्ययन 79
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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