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21. गाथापति पुत्र तरुण ऋषिभाषित179 का 21वां अध्याय गाथापति पुत्र तरुण के उपदेशों से सम्बन्धित है। गाथापति पुत्र तरुण का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त न तो जैन साहित्य में कहीं उपलब्ध होता है और न बौद्ध और हिन्दु परम्परा में ही कहीं इनका उल्लेख मिलता है। ऋषिभाषित में इनका मूलभूत उपदेश ज्ञानमार्ग का प्रतिपादक है। इनके अनुसार अज्ञान ही परम दुःख है, वही भय का कारण है और संसार अज्ञान मूलक है अर्थात् अज्ञान के कारण ही प्राणी संसार में परिभ्रमण करता है। वे स्वयं कहते हैं कि पहले मैं अज्ञान के कारण न जानता था, न देखता था, न समझता था। किन्तु अब मैं ज्ञानवान होकर जानता हूँ, देखता हूँ, और समझता हूँ। पूर्व में अज्ञान के कारण मैंने काम के वशीभूत होकर अनेक अकृत्य और अकरणीय कार्य किये, किन्तु अब ज्ञान युक्त होकर, समस्त दुःखों का अन्त कर शिव एवं अचलस्थान अर्थात् मुक्ति को प्राप्त करूँगा।
प्रस्तुत अध्याय में उदाहरण देकर यह बताया गया है कि अज्ञान के कारण किस प्रकार मृग, पक्षी और हाथी पाश में बाँधे जाते हैं और मत्स्यों के कण्ठ बींधे जाते हैं। किस प्रकार अज्ञान के कारण पतंगा दीपक पर गिरकर जल मरता है। अज्ञान के कारण ही वृद्ध सिंह जल में अपनी परछायी को सिंह समझकर अपना प्राणान्त कर लेता है। इसी प्रकार अज्ञान से विमोहित होकर माता भद्रा अपने ही पुत्र सुप्रिय का भक्षण करती है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्याय में अज्ञान के दुष्प्रभावों को दिखाकर ज्ञानमार्ग के अनुसरण की शिक्षा देते हुए कहा गया है कि ज्ञान के सुयोग से ही औषधियों का विन्यास, संयोजन और मिश्रण तथा विद्याओं की साधना सफल होती है। इन कथनों से यह फलित होता है कि गाथापति पुत्र तरुण ज्ञानमार्ग की परम्परा के कोई ऋषि रहे होंगे। जैन और बौद्ध तथा वैदिक परम्परा में इनके सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं मिलने से इनके विषय में अधिक कुछ कह पाना सम्भव नहीं है। यद्यपि इसकी जल में अपनी परछाईं को ही दूसरा सिंह समझकर, कुएँ में कूदकर सिंह के प्राणान्त की कथा पञ्चतन्त्र में भी उपलब्ध है।180 इससे पंचतन्त्र की कथा और ऋषिभाषित दोनों की प्राचीनता स्पष्ट हो जाती है।
22. गर्दभाल (दगभाल) ऋषिभाषित181 का बाइसवाँ अध्याय गर्दभाल ऋषि से सम्बन्धित है। जहाँ तक गर्दभाल ऋषि के व्यक्तित्व का प्रश्न है, ऋषिभाषित के अतिरिक्त
ऋषिभाषित : एक अध्ययन 73