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वस्तुतः प्रस्तुत अध्याय में भौतिकवादी सिद्धान्तों का प्रतिपादन होने से इसके प्रवक्ता के रूप में किसी ऋषि का उल्लेख नहीं किया गया। इस अध्याय में पाँच प्रकार के उत्कट बताये गये हैं— दण्डोत्कट, रज्जूत्कट, स्तेनोत्कट, देशोत्कट और सर्वोत्कट । सर्वप्रथम इस सन्दर्भ में उत्कट शब्द का अर्थ विचारणीय है । वैसे तो उत्कट शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, किन्तु यहाँ उत्कट का उन्मत्त या विषम अर्थ करना ही उचित होगा। उत्कट का एक अर्थ मदिरा भी है। वस्तुतः भौतिकवादी जीवन-दृष्टि अध्यात्मवाद की विरोधी थी, इसलिए उसे उत्कट कहा गया। यह भी सम्भव है कि भौतिकवादी दृष्टिकोण को मानने वाले लोगों को अध्यात्मवादियों ने उन्मत्त कहा हो। चूँकि भौतिकवादी मद्य आदि का सेवन करते थे और उसे अनुचित नहीं मानते थे, इसलिए भी उन्हें उत्कट कहा गया हो। यह भी सम्भव है कि मूल प्राकृत शब्द उक्कल का संस्कृत उत्कुल होगा । संस्कृत में उत्कुल शब्द पतित या घृणित कुल के अर्थ में आता है। यदि इसे उत्कुल मानें तो इसका अर्थ होगा — किनारे से बाहर निकल कर बहने वाला अर्थात् वे व्यक्ति जो अध्यात्मवादी धारा से भिन्न मत का प्रतिपादन करते थे, उत्कुल कहे जाते होंगे ।
प्रस्तुत अनुवाद में जो उत्कल रूप का प्रयोग किया गया है वह मेरी दृष्टि में उचित नहीं है, उसे या तो उत्कट होना चाहिए या उत्कुल या उत्कूल । प्रस्तुत अध्याय में जो पाँच प्रकार के उत्कट कहे गये हैं वे वस्तुतः पाँच प्रकार की भौतिकवादी दृष्टियाँ हैं, जो विभिन्न उदाहरणों के आधार पर अपनी भौतिकवादी मान्यताओं को प्रतिपादित करती हैं।
दण्डोत्कट वे व्यक्ति हैं जो दण्ड के दृष्टान्त द्वारा यह प्रतिपादित करते हैं कि जिस प्रकार दण्ड के आदि, मध्य और अन्तिम भाग पृथक्-पृथक् नहीं रहते हैं, वह समुदाय मात्र है, उसी प्रकार शरीर से पृथक् कोई आत्मा नहीं है।
रज्जूत्कट वे हैं जो यह मानते हैं कि जिस प्रकार रस्सी विभिन्न तन्तुओं का समुदाय मात्र है, उसी प्रकार जीव भी पाँच महाभूतों का समुदाय मात्र है और इनके अलग-अलग होने पर जीवन का भी उच्छेद हो जाता है।
स्तेनोत्कट वे हैं जो अन्य शास्त्रों में प्राप्त दृष्टान्तों को अपने पक्ष में व्याख्यायित कर अपने ही कथन को सत्य मानते हैं। इस प्रकार दूसरे की मान्यताओं का खण्डन करके उनके प्रति असहिष्णु होते हैं। इस स्तेनोत्कटवाद के विरोध में ही आगे चलकर निर्ग्रन्थ परम्पराओं में अनेकान्तवाद का विकास हुआ होगा, क्योंकि यहाँ 'मेरा कथन ही एकमात्र सत्य है' यह मानने वाले को दूसरों के प्रति करुणा का अपलापक कहा गया है।
ऋषिभाषित : एक अध्ययन 71