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________________ का वारिषेण होता है। यद्यपि 'वरिस' से संस्कृत रूप वृष्णि की सम्भावना हो सकती है। इससे इतना तो निश्चित है कि ये कोई साधक ऋषि थे, जो अरिष्टनेमि के समकालीन थे। पालि साहित्य में दीघनिकाय के अम्बट्ट सुत्त में कृष्ण ऋषि का उल्लेख है और अम्बट्ट को इनकी परम्परा का बताया गया है। इसी प्रकार औपपातिक सूत्र में ब्राह्मण परिव्राजकों की एक शाखा को 'कण्ह' कहा गया है। यह सम्भव है कि 'वरिसव कण्ह' ही इस शाखा के प्रवर्तक हों । औपपातिक में ब्राह्मण परिव्राजकों की एक अन्य शाखा 'दीवायण कण्ह' (द्वैपायन कृष्ण ) भी थी। अतः प्रथम शाखा 'वरिसव कण्ह' से सम्बन्धित रही होगी। 19. आरियायण 173 ऋषिभाषित का 19वाँ अध्ययन आरियायण नामक अर्हत् ऋषि से सम्बन्धित है। आरियायण का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होता है। बौद्ध और वैदिक परम्पराएँ भी इनके सम्बन्ध में मौन हैं। अतः इनके व्यक्तित्व और इनकी ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में निर्णयात्मक रूप से कुछ कह पाना कठिन है । प्रस्तुत अध्याय में यह कहा गया है कि सर्वप्रथम आर्य ही थे। पुनः उपदेश के रूप में यह बताया गया है कि अनार्य भाव, अनार्य कर्म और अनार्य मित्र का वर्जन करना चाहिए, क्योंकि जो अनार्य भाव, अनार्य कर्म और अनार्य मित्र का संसर्ग करता है वह भवसागर में परिभ्रमण करता है। इसके विपरीत जो आर्य भाव, आर्य कर्म और आर्य मित्रों से युक्त होता है वह आर्यत्व को प्राप्त होता है । अन्त में कहा गया है कि आर्य भाव, आर्य ज्ञान और आर्य चरित्र उचित है, अतः इनकी सेवा करना चाहिए । इस संक्षिप्त उपदेश के अतिरिक्त इनके सम्बन्ध में अन्य कोई जानकारी हमें उपलब्ध नहीं है। 20. उत्कट (भौतिकवादी) ऋषिभाषित के बीसवें अध्ययन 174 का नाम उत्कल या उत्कट है। इस अध्याय के प्रवक्ता के रूप में किसी ऋषि के नाम का उल्लेख नहीं है । यद्यपि अध्याय के अन्त में दूसरे अध्यायों के समान ही एवं सिद्धे बुद्धे. . त्तिबेमि' कहा गया है, किन्तु इस कथन का पूर्व कथन से कोई सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता है । मात्र अन्य अध्यायों की शैली में ही यह वाक्यांश यहाँ रख दिया गया है। 70 इसिभासियाई सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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