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अतिरिक्त ज्ञाताधर्मकथा 164 में भी विदुर का उल्लेख है । उसमें अर्जुन, भीमसेन, नकुल, सहदेव, दुर्योधन, गंगेय आदि के साथ विदुर का भी नामोल्लेख मात्र है। इसके अतिरिक्त आगम साहित्य में अन्यत्र कहीं विदुर का उल्लेख नहीं है।
प्रस्तुत अध्याय में विदुर के उपदेश के सम्बन्ध में सर्वप्रथम यह बताया गया है कि वही विद्या महाविद्या, या सर्व विद्याओं में श्रेष्ठ विद्या है जो सभी दुःखों से मुक्त करती है। पुनः यह कहा गया है कि जिस विद्या के द्वारा जीवों की गति एवं आगति का अर्थात् बन्धन और मुक्ति का तथा आत्मभाव का बोध होता है, वह विद्या दुःखों से मुक्त कर सकती है। विदुर ऋषि का यह कथन उस औपनिषदिक कथन का ही रूप है जिसमें कहा गया है कि 'सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् वही विद्या है जो मुक्ति दिलाती है । पुनः इसमें यह भी बताया गया है कि जिस प्रकार रोग का परिज्ञान और उसका सम्यक् निदान तथा उसकी औषधि का परिज्ञान सही चिकित्सा के लिए आवश्यक है, उसी प्रकार मुक्ति के लिए ज्ञान आवश्यक है । इसके साथ ही इस अध्याय में स्वाध्याय और ध्यान पर विशेष रूप से बल दिया गया है। यह भी कहा गया है कि जितेन्द्रिय साधक संसार वास का समस्त प्रकार से परिज्ञान करके स्वाध्याय और ध्यान में संलग्न होकर सावद्य प्रवृत्ति के कार्यों से विमुख होता हुआ निरवद्य प्रवृत्ति का आचरण करे। समस्त परकीय या वैभाविक दशाएँ सावद्य योग है, दुश्चरित्र है, ऐसा समझकर उनका आचरण न करे। जो साधक इस प्रकार से आचरण करता है वह सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होता है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्याय मुख्य रूप से सर्वप्रथम स्वाध्याय और ध्यान के साथ सम्यक् ज्ञान पर बल देता है और उसके साथ सावद्य या हिंसक प्रवृत्तियों से विमुख होकर अहिंसक प्रवृत्ति के आचरण का सन्देश देता है।
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जैन परम्परा के अतिरिक्त बौद्ध परम्परा 165 में भी हमें 'विधुर' (विदुर) का उल्लेख मिलता है। यद्यपि विधुर की जो कथा बौद्ध परम्परा में उपलब्ध होती है उसका जैन और वैदिक परम्परा में उपलब्ध विदुर की कथा से कोई साम्य नहीं है। बौद्ध परम्परा में इन्हें ककुसन्ध बुद्ध के दो अग्र श्रावकों में एक माना गया है। मिलिन्दप्रश्न के अनुसार बोधिसत्त्व के एक जन्म का नाम विदुर था। इस प्रकार बौद्ध परम्परा के विदुर सम्बन्धी इन कथानकों की जैन परम्परा के इन विदुर से कोई साम्यता खोज पाना कठिन ही है।
वैदिक परम्परा में और विशेष रूप से महाभारत में विदुर का विस्तार से उल्लेख प्राप्त होता है। इन्हें व्यास के द्वारा अम्बिका की दासी से उत्पन्न बताया गया है। इस प्रकार ये शूद्रा के गर्भ से उत्पन्न ब्राह्मण पुत्र हैं। महाभारत आदि पर्व तथा सभापर्व में इनका विस्तार से उल्लेख मिलता है। महाभारत 68 इसिभासियाई सुत्ताई