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________________ मंखलिपुत्त हैं। क्योंकि, मंकि गीता स्पष्ट रूप से नियतिवाद का प्रतिपादन करती है। वह कहती है कि जो कुछ होता है वह व्यक्ति के प्रयत्न से नहीं अपितु दैव की लीला से है। भाग्य ही सब कुछ है। जो हठपूर्वक पुरुषार्थ करता है तथा उसमें सफल नहीं होता तो खोज करने पर ज्ञात होता है कि उसमें दैव का ही सहयोग है। इस आधार पर यह माना जा सकता है कि ऋषिभाषित के मंखलिपुत्त, भगवतीसूत्र आदि जैन आगमों में उल्लिखित मंखलि गोसाल, पालि त्रिपिटक साहित्य में उल्लिखित मंक्खलि गोसाल तथा महाभारत का मंकि ऋषि एक ही व्यक्ति है। वस्तुतः जैन और बौद्ध परम्पराओं में जब साम्प्रदायिक अभिनिवेश दृढ़ हुआ तब ही उनके उपदेशों को तथा उनके जीवन वृत्त को विकृत रूप से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया । यह भी साहित्यिक और अभिलेखीय प्रमाणों से सिद्ध होता है कि मंखलिपुत्त अपने युग के एक प्रभावशाली श्रमण परम्परा के व्यक्ति थे और उनका आजीवक सम्प्रदाय उनके पश्चात् भी लगभग 1000 वर्ष तक अस्तित्व में रहा। ऋषिभाषित के मंखलिपुत्त आजीवक परम्परा के प्रबुद्ध आचार्य मंखलि गोसाल ही हैं। यद्यपि भगवतीसूत्र के 15वें शतक में इस परम्परा के अन्य आचार्यों के भी उल्लेख मिलते हैं । 12. जण्णवक्क (याज्ञवल्क्य) ऋषिभाषित का बारहवाँ अध्याय जण्णवक्क (याज्ञवल्क्य) से सम्बन्धित है। इसमें याज्ञवल्क्य को अर्हत् ऋषि कहा गया है । याज्ञवल्क्य के जीवनवृत्त एवं उपदेशों के सम्बन्ध में ऋषिभाषित 132 के अतिरिक्त जैन आगम साहित्य एवं कथा साहित्य से अन्य कोई सूचना प्राप्त नहीं होती है। ऋषिभाषित की संग्रहणी गाथा में उन्हें अरिष्टनेमि के युग का प्रत्येकबुद्ध कहा गया है। इनके सम्बन्ध में, विस्तृत जानकारी के लिए हमें जैनेतर स्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जैनेतर स्रोतों में भी बौद्ध स्रोतों से हमें कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है, मात्र वैदिक स्रोतों से ही हमें इनके बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वैदिक स्रोतों में याज्ञवल्क्य का उल्लेख शतपथब्राह्मण' 133 शांखायन आरण्यक 134 बृहदारण्यक उपनिषद् 135 और महाभारत 136 में प्राप्त होता है। याज्ञवल्क्य के नाम से याज्ञवल्क्य स्मृति भी प्रसिद्ध है । शतपथब्राह्मण और शांखायन आरण्यक में याज्ञवल्क्य के जो उल्लेख उपलब्ध हैं, वे समान ही हैं। यदि हम महाभारत और याज्ञवल्क्य स्मृति को छोड़ दें, तो वैदिक साहित्य में बृहदारण्यक उपनिषद् ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें याज्ञवल्क्य का 60 इसिभासियाई सुत्ताई "
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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