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________________ थेर का उल्लेख है । यद्यपि इसकी अट्ठकथा में जो विवरण है उसमें उन्हें मगध राष्ट्र में उत्पन्न कहा गया है। यद्यपि अन्य विवरण में जैन एवं बौद्ध उल्लेखों से कोई समानता नहीं है। बौद्ध और जैन दोनों ही परम्पराओं के उपलब्ध विवरण इतना तो स्पष्ट कर दे रहे हैं कि मंखलिपुत्त गोसाल अपने युग के एक प्रभावशाली आचार्य तथा नियतिवाद के संस्थापक थे । पालि त्रिपिटक और जैन आगम साहित्य में उनके दार्शनिक मन्तव्यों की विस्तार से चर्चा उपलब्ध होती है। दोनों ही उन्हें नियतिवादी मानते हैं। नियतिवाद वह विचारधारा है जो व्यक्ति के पुरुषार्थ की अपेक्षा विश्व की एक नियत व्यवस्था पर बल देती है। यहाँ हम इस सम्बन्ध में अधिक विस्तार से चर्चा करना नहीं चाहेंगे। किन्तु, इतना अवश्य ही कहना चाहेंगे कि जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में ऋषिभाषित के अतिरिक्त मंखलि गोसाल के सम्बन्ध में और उनकी दार्शनिक मान्यताओं सम्बन्ध में जो विवरण उपलब्ध हैं वे एक-पक्षीय आलोचनात्मक हैं और मंखलि गोसाल के व्यक्तित्व और दार्शनिक मान्यताओं को विकृत रूप में प्रस्तुत करते हैं। सम्भवतः ऋषिभाषित ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जो मंखलिपुत्त को एक सम्मानित अर्हत ऋषि के रूप में और उनके उपदेशों को प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करता है । यह सत्य है कि ऋषिभाषित में मंखलि गोसाल का जो उपदेश प्रस्तुत है उसमें भी नियतिवादी तथ्य देखें जा सकते हैं । किन्तु, मंखलिपुत्त के इस नियतिवाद का उद्देश्य व्यक्ति के कर्तृत्व के अहंकार को समाप्त कर उसे एक अनासक्त जीवन दृष्टि प्रदान करना है। वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जो पदार्थों की परिणति को देखकर कम्पित होता है, प्रभावित होता है, क्षोभित होता है, आहत होता है— वह साधक तदनुरूप मनोभावों से प्रभावित होने के कारण आत्मरक्षक नहीं बन सकता। मंखलिपुत्त के उपदेश का तात्पर्य यही है कि विश्व की घटनाएँ अपने क्रम से घटित होती रहती हैं। व्यक्ति के नहीं चाहने पर भी जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियाँ आती हैं। जो व्यक्ति जीवन की अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में इन्हें पुद्गल की परिणति समझकर अप्रभावित, अक्षोभित अनाहत रहता है वही साधक चतुर्गति रूप इस संसार से अपनी और दूसरों की रक्षा कर सकता है। उनके इस उपदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके नियतिवाद का मुख्य उपदेश अनासक्त जीवन के निर्माण के लिए है। यही बात हमें भगवद्गीता के उपदेश में मिलती है। वहाँ भी नियतिवाद का उपदेश व्यक्ति की फलासक्ति को समाप्त करने के लिए दिया गया है। महाभारत 131 में हमें मंकि गीता के नाम से मंकिऋषि के उपदेश प्राप्त होते हैं। मेरी मान्यता है कि महाभारत के यह मंकि ऋषि निश्चित ही ऋषिभाषित के ऋषिभाषित : एक अध्ययन 59
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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