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________________ 10. तेतलीपुत्र ऋषिभाषित के 10वें अध्याय में तेतलीपुत्र के उपदेशों का संकलन है।117 प्राचीन जैन साहित्य में ऋषिभाषित के अतिरिक्त ज्ञाताधर्मकथा,118 विपाकसूत्र,119 विशेषावश्यक-भाष्य120 और सूत्रकृतांगचूर्णि121 में तेतलीपुत्र का उल्लेख मिलता है। ज्ञाताधर्मकथा के 14वें अध्ययन में तेतलीपुत्र का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। ज्ञाता के अनुसार ये तेतलीपर नामक नगर के कनकरथ नामक राजा के अमात्य थे। इन्होंने स्वर्णकार पुत्री पोट्टिला से विवाह किया था। राजा कनकरथ इस भय से कि मेरी ही सन्तान मुझे पदच्युत न कर दे, अपने पुत्रों को विकलांग कर देता था। रानी ने यह समस्या तेतलीपुत्र को बतायी। संयोग से उसकी पत्नी पोटिला और रानी पद्मावती साथ-साथ गर्भवती हुईं और साथ ही प्रसव किया। तेतलीपुत्र की पत्नी ने मृतकन्या और रानी ने पुत्र का प्रसव किया। तेतलीपुत्र अपनी मृतकन्या रानी को देकर पुत्र को घर ले आता है तथा पत्रोत्सव करता है। कुछ कारणों से वह पोडिला से अन्यमनस्क हो जाता है। नगर में आर्या सुव्रता अपने साध्वी समुदाय के साथ आती है। कुछ साध्वियाँ शिक्षार्थ तेतलीपत्र के घर में प्रवेश करती हैं। पोटिला साध्वियों से पति को वश में करने का उपाय पूछती है। आर्यिकाएँ कहती हैं कि ‘ऐसे उपाय बताना हमारे लिए निषिद्ध है, हम धर्मोपदेश दे सकती हैं। पोट्टिला धर्मोपदेश सुनकर दीक्षित हो जाती है। उधर कनकरथ की मृत्यु के पश्चात् उसके द्वारा पोषित राजपुत्र राजा बनता है, वह तेतलीपुत्र को उसके उपकार के कारण पर्याप्त सम्मान देता है। कथा के अनुसार पोट्टिला मरकर स्वर्ग में देव बनती है और अपने पूर्व पति को प्रतिबोध देना चाहती है। राजा को उसके विरुद्ध कर देती है। राजा से यथोचित सम्मान न मिलने पर तेतलीपुत्र दुःखी हो आत्महत्या का प्रयत्न करता है। आत्महत्या के अनेक उपाय करने पर भी वह असफल रहता है, अतः उसका जीवन अविश्वास और अश्रद्धा से भर जाता है। अवसर जानकर पोट्टिला, जो देवता बन गई थी, उसे प्रतिबोध देती है। उसके उपदेश से प्रतिबोधित हो तेतलीपुत्र दीक्षित हो साधना करते हुए मुक्ति प्राप्त करते हैं। यही कथा संक्षेप में ऋषिभाषित में भी है। ज्ञाता और ऋषिभाषित के इस अध्ययन की तुलना के लिए यहाँ दोनों से कुछ पाठ दिये जा रहे हैं। ऋषिभाषित (10) सद्धेयं खलु समणा वदन्ती, सद्धेयं खलु माहणा, अहमेगो ज्ञाताधर्मकथा (2/14) तए णं से तेतलीपुत्ते एवं वयासि सद्धेय खलु भो समणा वयंति, सद्धेयं ऋषिभाषित : एक अध्ययन 55
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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