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________________ वे विनय को प्रधानता देने वाले विचारक हैं। बुद्ध और महावीर के युग में विनयवादियों की एक परम्परा थी। मेरी दृष्टि में पुष्पशालपुत्र उसी से सम्बन्धित एक प्रभावशाली आचार्य रहे होंगे। ऋषिभाषित में उनके उपदेशों में मुख्य रूप से प्राणातिपात, असत्य वचन, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह तथा क्रोध, मान आदि पाप-कर्मों से दर होने का निर्देश मिलता है। वे कहते हैं कि क्रोध, मान आदि से रहित विनम्र आत्मा शास्त्रानुसार आचरण करता हुआ आत्मपर्यायों का ज्ञाता होता है; अर्थात् आत्म-साक्षात्कार करता है। इस प्रकार इनके चिन्तन में पापनिवृत्ति और विनम्रता ही प्रमुख प्रतीत होती है। जैन परम्परा के अतिरिक्त बौद्ध परम्परा में भी हमें पुष्पस्थविर (फुस्सथेर) का उल्लेख मिलता है। थेरगाथा की अट्ठकथा1 में तथा अपदान में इनके उपदेशों का विस्तार से विवरण दिया गया है। पालि साहित्य में उपलब्ध इनके उपदेश में मुख्य रूप से भविष्य में होने वाले भिक्षु-भिक्षुणियों की पाप-प्रवृत्तियों का निर्देश किया गया है और इस प्रकार ये शास्त्रानुकूल सदाचार के पालन पर अधिक बल देते हुए प्रतीत होते हैं। यह बात सामान्य रूप से ऋषिभाषित में भी उपलब्ध होती है। फिर भी सुनिश्चित रूप से यह कह पाना कि पुष्पशालपत्र पालि साहित्य के पुष्पस्थविर ही हैं, कठिन है। एक संकेत जो हमें बौद्ध साहित्य में मिलता है वह यह कि ये पण्डर भिक्षु थे। पण्डर भिक्षुओं का उल्लेख हमें जैन और बौद्ध दोनों ही स्रोतों से प्राप्त होता है। सम्भव है कि पुष्पशालपुत्र पण्डर भिक्षुओं की परम्परा के रहे हों, और वह परम्परा विनयवादियों की परम्परा रही हो। ऋषिभाषित में उनके उपदेश का प्रारम्भ इस प्रकार होता है-'अंजलिपूर्वक पृथ्वी पर मस्तक रखकर उन्होंने समस्त शयनासन तथा भोजनपान का त्याग कर दिया। सम्भावना यही लगती है कि ये निर्ग्रन्थ परम्परा से भिन्न किसी अन्य परम्परा के ऋषि थे, जिन्होंने अन्त में आमरण अनशन करके शरीर त्यागा होगा, किन्तु विस्तृत जानकारी के अभाव में अधिक कुछ कह पाना सम्भव नहीं है। वैदिक परम्परा में इनके सम्बन्ध में हमें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। 6. वल्कलचीरी ऋषिभाषित2 के षष्ठ अध्याय में वल्कलचीरी के उपदेशों का संकलन है। ऋषिभाषित के अतिरिक्त वल्कलचीरी का उल्लेख हमें औपपातिक, भगवतीसूत्र,4 आवश्यकचूर्णि5 तथा ऋषिमण्डल में भी मिलता है। वल्कलचीरी की कथा जैन परम्परा में एक प्रसिद्ध कथा है। आवश्यकचूर्णि और 50 इसिभासियाई सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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