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________________ प्राप्त होता है। वहाँ इनको देवकी पुत्र कृष्ण का उपदेशक बताया गया है । - छान्दोग्य के अतिरिक्त महाभारत में अंगिरा नामक ऋषि का उल्लेख मिलता है। इनके आठ पुत्रों में एक पुत्र का नाम घोर था । इससे ऐसा लगता है कि छान्दोग्य के घोर अंगिरस, महाभारत” में उल्लिखित अंगिरा ऋषि के पुत्र घोर होंगे। क्योंकि, पुत्र के नाम के साथ पिता के नाम का उल्लेख भारत में प्राचीनकाल से होता रहा है। पुनः अंगिरस यह नाम भी अंगिरा के पुत्र का ही सूचक है। इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में हम यही कह सकते हैं कि ऋषिभाषित के अंगिरस भारद्वाज, छान्दोग्य उपनिषद् के घोर अंगिरस और सुत्तनिपात के अंगिरस भारद्वाज एक ही व्यक्ति हैं; जो एक ऋषि के रूप में सुविख्यात रहे हैं और तीनों ही परम्पराओं ने अपने-अपने ढंग से इन्हें स्वीकार कर लिया है। 5. पुष्पशालपुत्र ऋषिभाषित के पञ्चम अध्याय में पुष्पशालपुत्र के उपदेशों का सङ्कलन है। ऋषिभाषित" के अतिरिक्त पुष्पशालपुत्र का उल्लेख आवश्यकनिर्युक्ति, 87 विशेषावश्यकभाष्य, ,88 और आवश्यकचूर्णि में भी मिलता है। आचारांग की शीलांक कृत टीका" में भी पुष्पशाल का उल्लेख आया है। आवश्यकचूर्णि में भी पुष्पशाल के दो उल्लेख मिलते हैं। इसमें एक पुष्पशाल को गोबर ग्राम का और दूसरे को वसन्तपुर का निवासी बताया गया है। वसन्तपुर निवासी पुष्पशाल का ऋषिभाषित के पुष्पशालपुत्र से कोई सम्बन्ध नहीं है। उसे एक संगीतज्ञ बताया गया है, किन्तु गोबर ग्राम निवासी पुष्पशालपुत्र वही है जिनका उल्लेख ऋषिभाषित में है। इस समानता का कारण यह भी है कि आवश्यकचूर्णि में गोबर ग्राम निवासी पुष्पशालपुत्र को सेवा-धर्म प्रधान बताया गया है। ऋषिभाषित में भी वे विनय को प्रधानता देते हुए प्रतीत होते हैं । अतः दोनों एक हो सकते हैं। दोनों को एक मानने में मात्र आपत्ति यह हो सकती है कि गोबर ग्राम वासी पुष्पशालपुत्र महावीर के समकालीन बताये गये हैं जबकि ऋषिभाषित की संग्रहणी गाथा में उल्लिखित पुष्पशालपुत्र को अरिष्टनेमि के तीर्थ का बताती है । किन्तु, संग्रहणी गाथा कालनिर्णय के सन्दर्भ में प्रामाणिक नहीं लगती, क्योंकि उसमें मंखलिपुत्र- गोशालक को भी अरिष्टनेमि के तीर्थ का बताया गया है। जबकि वे वस्तुतः महावीर और बुद्ध के समकालीन हैं। आवश्यकचूर्णि में उपलब्ध विवरण और ऋषिभाषित में उल्लिखित पुष्पशाल के उपदेशों के आधार पर केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ऋषिभाषित : एक अध्ययन 49
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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