SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दू परम्परा में हम महाभारत और गीता में असित देवल का उल्लेख पाते हैं। महाभारत के आदिपर्व6१, सभापर्व, शल्यपर्व1, शान्तिपर्व72 और अनुशासनपर्व में असित देवल का उल्लेख हुआ है। शल्यपर्व में असित देवल को प्रारम्भ में गृहस्थ धर्म का आश्रय लेकर साधना करने वाला बताया गया है। जैन स्रोतों से भी इसकी पुष्टि होती है। उसमें यह भी बताया गया है कि असित देवल समभाव से युक्त तथा महातपस्वी थे। इस अध्याय में असित देवल और जेगीशव्य की चर्चा का भी उल्लेख है। इस अध्याय में एक बात जो सबसे महत्त्वपूर्ण है, वह यह है कि वे जेगीशव्य के उपदेश से प्रभावित होकर गृहस्थ धर्म का त्याग कर मोक्षधर्म अर्थात् संन्यास धर्म का पालन करने लगे। शान्तिपर्व में भी जेगीशव्य और असित देवल को समत्व बुद्धि का उपदेश देते हुए प्रस्तुत किया गया है। इन तथ्यों से इतना तो अवश्य स्पष्ट है कि असित देवल प्रारम्भ में गृहस्थ-साधक के रूप में तपस्यारत थे, परन्तु अन्त में उन्होंने संन्यास मार्ग को ग्रहण कर समत्व-बुद्धि की साधना की। शान्तिपर्व के ही एक अन्य अध्याय (275) में नारद और असित देवल का संवाद है। प्रस्तुत अध्याय में देवल पंचमहाभूत, काल, भाव और अभाव इन आठ नित्य तत्त्व की स्थापना करते हैं और इनसे ही जगत की उत्पत्ति बताते हैं। इसी अध्याय में उन्होंने नारद को इन्द्रियों के संयम का भी उपदेश दिया है। इससे ऐसा लगता है कि बौद्ध परम्परा में असित देवल और नारद को सम्बन्धित करने का जो प्रयत्न है, उसमें आंशिक सत्यता तो अवश्य है। इसके अतिरिक्त गीता4, माठरवृत्ति, ब्रह्मसूत्र भाष्य और याज्ञवल्क्यस्मृति की अपरादित्य टीका में भी देवल के उल्लेख हैं। यद्यपि महाभारत में कहीं-कहीं देवल को एक पौराणिक पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया गया है, परन्तु तीनों परम्पराओं में उनका उल्लेख होने से इतना तो निश्चित होता है कि देवल एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। यद्यपि यह प्रश्न अभी अवशेष रहता है कि यह कितने प्राचीन ऋषि हैं। इस सन्दर्भ में दो-तीन बातें विचारणीय हैं। महाभारत में तथा गीता में इन्हें नारद का समकालीन प्रस्तुत किया गया है। बौद्ध परम्परा की जातक कथा में भी इन्हें नारद को उपदेश देने वाला कहा गया है। ऋषिभाषित में देव नारद और वज्जियपत्त के बाद असित देवल का अध्याय आता है। इन सबसे यह अवश्य सिद्ध होता है कि असित देवल भी महाभारत काल के ऋषि हैं। जातक कथा में इन्हें गौतम बुद्ध के काल में अन्य जन्म ग्रहण करने वाला बताया गया है; जो इनकी गौतम बुद्ध से प्राचीनता को सिद्ध करता है। यद्यपि इन सब आधारों पर इनका निश्चित समय बता पाना कठिन है, पर इतना अवश्य 46 इसिभासियाई सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy