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________________ में जो असित देवल को बीज वनस्पति एवं सचित्त जल का उपभोग करते हुए सिद्धि को प्राप्त करने वाला कहा गया है, इससे यह सिद्ध होता है कि ये मूलतः निर्ग्रन्थ परम्परा से सम्बद्ध नहीं थे, किन्तु फिर भी इन्हें इस परम्परा में पूर्व में सम्मानपूर्वक स्थान प्राप्त था, क्योंकि निर्ग्रन्थ परंम्परा के भिक्षु इनके और इसी प्रकार से नमि आदि अन्य ऋषियों के उदाहरण देकर ही सुविधावादी प्रवृत्तियों का समर्थन कर रहे थे । सूत्रकृतांग के टीकाकार शीलांक ने 'असिते दविले' पाठ के आधार पर असित और देवल ऐसे दो व्यक्तियों की कल्पना कर ली, किन्तु ऋषिभाषित के आधार पर ही यह सिद्ध हो जाता है कि असित देवल दो व्यक्ति नहीं हैं, अपितु एक ही व्यक्ति है । इसिमण्डल" में इन्हें काम वासना से निवृत्त होने वाला बताया गया है। ऋषिमण्डल वृत्ति में जो लगभग 13वीं - 14वीं शती की रचना है - इनका पूरा जीवन दिया गया है। उसमें कहा गया है कि ये अपनी पुत्री अर्धशकासा के प्रति ही कामासक्त हो गये, किन्तु प्रबुद्ध हो वे वासनानिवृत्त हो गये। इससे यह भी सिद्ध होता है कि ये मूलतः तापस परम्परा से ही सम्बन्धित थे। में बौद्ध त्रिपिटक साहित्य में भी असित देवल का उल्लेख एक ऋषि के रूप हुआ है। मज्झिमनिकाय का आसलायन सुत्त 7 उनके सम्बन्ध में हमें कुछ विवरण देता है। उसमें कथा यह है कि एक समय सात ब्राह्मण विद्वान् जंगल में निवास कर रहे थे। उनकी अवधारणा यह थी कि ब्राह्मण ही सर्वोच्च जाति है और वही ब्रह्मा के वास्तविक पुत्र हैं। असित देवल ने जब इस बात का विरोध किया तब ब्राह्मणों ने उसे शाप दिया, किन्तु ब्राह्मणों का शाप असित देवल को प्रभावित नहीं कर सका। अन्त में ब्राह्मणों ने अपनी तपस्या को निरर्थक जानकर असित देवल से अपने प्रश्नों का समाधान चाहा। असित ने उनके प्रश्नों का समाधान किया और अन्त में वे ब्राह्मण असित के अनुयायी हो गये। बुद्धघोष ने महावंश में असित देवल का उल्लेख बोधिसत्त्व के रूप में किया है (महावंश II. 785)। इसके अतिरिक्त इन्द्रियजातक' में भी देवल का काल- देवल के रूप में उल्लेख है। इस जातक कथा में नारद को असित देवल का छोटा भाई बताया गया है तथा उनके द्वारा उसे उपदेशित किये जाने का भी उल्लेख है। इस प्रकार बौद्ध परम्परा में भी असित देवल एक संन्यासी के रूप में हमारे सामने आते हैं और वे अपने लघु भ्राता नारद को भी संसार के प्रेम-पाश मुक्त कराने का प्रयत्न करते हैं। से ऋषिभाषित : एक अध्ययन 45
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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