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44. चउआलीसं वरुणज्झयणं
दोहिं अंगेहिं उप्पलन्तेहिं आता जस्स ण उप्पीलति । रागंगेचेव य विदोसे से हु सम्मं णियच्छती । वरुणे णं अरहता इसिणा बुझतं । ।
कर्म के दोनों अंग — राग और द्वेष की उत्पीड़ना से जिसकी आत्मा उत्पीड़ित नहीं होती वही सम्यक् प्रकार से निश्चय करता है।
ऐसा अर्हत् वरुण ऋषि बोले ।
One, who is least perturbed by attachment and aversion, the twin wings of Karma, alone is endowed with a true discretion and decisive capacity, said Varuna, the seer.
एवं से सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दन्ते दविए अलं ताई णो पुरवि इच्चत्थं हव्वमागच्छति त्ति बेमि ।
इइ वरुण - णामज्झयणं ।
इस प्रकार वह सिद्ध, बुद्ध, विरत, निष्पाप, जितेन्द्रिय, वीतराग एवं पूर्ण त्यागी बनता है, और भविष्य में इस संसार में नहीं आता है।
ऐसा मैं (अर्हत् वरुण ऋषि) कहता हूँ।
This is the means, then, for an aspirant to attain purity, enlightenment, emancipation, piety, abstinence and nonattachment. Such a being is freed of the chain of reincarnations.
Thus, I Varuna, thee seer, do pronounce. वरुण नामक चौवालीसवाँ अध्ययन पूर्ण हुआ ।44।
422 इसिभासियाई सुत्ताई
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