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18. जागते रहो। सोओ मत। धर्माचरण में प्रमाद मत करो। अन्यथा विषयकषायादि अनेक चोर तुम्हारे संयम और योग का हरण करने में चूक नहीं करेंगे।
18. Be alert. Be not indolent. Indolence in spiritual practice is fatal. Otherwise the robbers of desire and sin shall rob you of your Yoga and restraint, positively.
पंचिन्दिया सण्णा, दण्डा सल्लाई गारवा तिण्णि । बावीसं च परीसह, चोरा चत्तारि य कसाया ।।19।।
19. पांच इन्द्रियां, संज्ञा ( मन की मूल अभिलाषाएं), त्रिदण्ड, शल्य, तीनों गौरव (गर्व, गारव), बाईस परीषह और चारों कषाय ये सभी चोर हैं।
19. The five senses, leading urges, sin, ego and evils are all robbers.
जागरह णरा निच्चं, मा भे धम्मचरणे पमत्ताणं । काहिन्ति बहू चोरा, दोग्गतिगमणे हिडाकम्पं । । 201
20. मानवो! सर्वदा जागते रहो । धर्माचरण में प्रमाद मत करो। अन्यथा ये वासना-कषायादि विविध चोर तुम्हारे सत्कर्मों का हरण कर, दुर्गतिदायक कर्मों की ओर तुम्हें प्रेरित कर देंगे।
20. Be alert. Never muffle up religious practices. Else sin and desire shall deprive you of your benefic deeds and lead you to a tragic destiny.
अण्णायकम्पि अट्टालकम्मि जग्गन्त सोयणिज्जो सि । णाहिसि वणितो सन्तो, ओसहमुल्लं अविन्दन्तो ।।21।।
21. अज्ञात अट्टालिका (प्रासाद) में जागते हुए भी तेरी दशा शोचनीय है । जैसे (दीन-हीन व्यक्ति) व्रण (घाव) हो जाने पर भी औषध के मूल्य की जानकारी न होने से औषधि प्राप्त नहीं कर पाता है। (इसी प्रकार मानव जागृति का महत्त्व समझे बिना परमार्थ तत्त्व को प्राप्त नहीं कर पाता ।)
21. You guard this enigmatic palace and still your plight is miserable, as a wounded being has no option but to suffer his malady for the want of remedial knowledge. (Ignorance of spiritual consciousness deprives one of the supreme knowledge.)
जागरह णरा णिच्चं, जागरमाणस्स जागरति सुत्तं । जे सुवति ण से सुहिते, जागरमाणे सुही होति ।। 22।।
35. अद्दालक अध्ययन 393