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12. सम्यक्त्वनिरत और आस्रवजन्य पापकर्मों के वर्जक को मित्र समझना चाहिये। उस मित्र की भली प्रकार से सेवा करनी चाहिये। ऐसे मित्रों का सम्पर्क या उपासना दोनों लोक में सुखकारी होती है।
12. One, ever equanimous and least prone to sinful acts, should be deemed as a friend. We should serve such a one with devotion. Seeking company of such beings and serving them is ever benefic, now or later.
संसग्गितो पसूयन्ति, दोसा वा जइ वा गुणा । वाततो मारुतस्सेव, ते ते गन्धा सुहावहा ।।13।।
13. संसर्ग से ही दोष और गुण पैदा होते हैं। वायु जिस ओर से बहती है उस ओर की सुगन्ध अथवा दुर्गन्ध ग्रहण कर लेती है।
13. Virtue and vice emanate from corresponding contact, as fragrance or malodour flow with the wind carries either.
संपुण्णवाहिणीओ वि, आवन्ना लवणोदधिं ।
पप्पा खिप्पं तु सव्वा वि, पावन्ति लवणत्तणं ।।14।।
14. समस्त नदियाँ आश्रय प्राप्त करने के लिये वेग से लवण समुद्र में आकर मिलती हैं। उसमें मिलते ही उन नदियों का मधुर जल भी खारा बन जाता है।
14. All the rivers rush towards the salty ocean in their urge to seek refuge. This confluence results in the subsequent bitterness of previously sweet stream.
समस्सिता गिरिं मेरुं, णाणावण्णा वि पक्खिणो । सव्वे हेमप्पभा होन्ति, तस्स सेलस्स सो गुणो ।।15।।
15. नाना वर्ण वाले पक्षी जब सुमेरु पर्वत पर पहुँच कर उसका आश्रय लेते हैं तो वे सभी स्वर्ण की आभा से युक्त हो जाते हैं। यह उस सुमेरु पर्वत का गुण है।
15. Birds of diverse kind borrow a golden hue when they reach the summit of the fabled golden Sumeru Mountain. This virtue is conferred by the proximity of the great Mountain. कल्लाणमित्तसंसग्गिं, संजओ मिहिलाहिवो ।
फीतं महितलं भोच्चा, तंमूलाकं दिवं गतो ।।16।।
16. कल्याण मित्र अथवा कल्याणकारी मित्र के सम्पर्क से मिथिलाधिपति संजय विस्तृत राज्य को भोगकर, उगते सूर्य की आभा के समान दिव्यलोक को प्राप्त हुआ।
33. अरुण अध्ययन 381