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________________ मणुण्णम्मि अरज्जन्ते, अट्ठे इयरम्मि य । असुत्ते अविरोधीणं, एवं सोए पिहिज्जति ।। 4 ।। 4. मधुर शब्दों में रंजित नहीं होता है और अप्रिय - कठोर शब्दों पर द्वेष नहीं करता। इस प्रकार माध्यस्थभाव में जाग्रत् - अप्रमत्त रहता हुआ कर्म के प्रवाह को रोक सकता है। 4. One who remains unruffled and equanimous at the pleasant words as well as the bitter ones, smothers Karmic flow. रूवं चक्खुमुवादाय, मण्णुण्णं वा वि पावगं । मम्मि ण रज्जेज्जा, ण पदुस्सेज्जा हि पावए ||5|| 5. नेत्र के द्वारा सुन्दर या असुन्दर रूप को ग्रहण कर, सुन्दरता पर अनुरक्त न हो और असुन्दरता पर द्वेष न करे। 5. Similarly should our eyes be indifferent to graceful looks as well as the ugly ones. मणुण्णम्मि अरज्जन्ते, अट्ठे इयरम्मि य । असुत्ते अविरोधीणं, एवं सोए पिहिज्जति ।। 6 ।। 6. सुन्दर रूप पर अनुरक्त नहीं होता और असुन्दर रूप पर द्वेष नहीं करता । इस प्रकार तटस्थ वृत्ति में जाग्रत् रहकर कर्म के स्रोत को रोक सकता है। 6. Unenticed by visual temptations and unrepulsed by abhorent looks, one can stop the Karmic ingress. गन्धं घाणमुवादाय, मण्णुण्णं वा वि पावगं । मणुण्णम्मि ण रज्जेज्जा, ण पदुस्सेज्जा हि पावए || 7 || 7. नासिका के द्वारा सुगन्ध या दुर्गन्ध को ग्रहण कर, सुगन्ध में आसक्त न हो और दुर्गन्ध से घृणा-द्वेष न करे। 7. Let the nostrils barely sense the perfumes as well as abominable odours, indifferently, neither relishing the one nor abhoring the other. मणुण्णम्मि अरज्जन्ते, अट्ठे इयरम्मि य। असुत्ते अविरोधीणं, एवं सोए पिहिज्जति ।। 8॥ 8. मनोहारी गन्ध पर आसक्त नहीं होता और दुर्गन्ध पर घृणा नहीं करता, इस प्रकार अविरोधी भाव - समचित्त में जाग्रत् रह कर कर्म के स्रोत को रोक सकता है। 29. वर्द्धमान अध्ययन 361
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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