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जे भिक्खु सखेयमागते, वयणं कण्णसुहं परस्स बूया। सेऽणुप्पियभासए हु मुद्धे, आतडे णियमा तु हायती।।3।।
3. जो श्रमण मित्रता के वशीभूत होकर दूसरे (गृहस्थ) से कर्णप्रिय मीठी वाणी बोलता है और वह गृहस्थ उस मधुरभाषी मुनि पर मुग्ध/मोहित हो जाता है। किन्तु, उसकी यह मधुरभाषिता उसके आत्महित का अधिकता से नाश करती है।
3. An ascetic who is endeared by the relationship of an affectionate householder establishes friendship with the latter and a mutuality is seen to subsist which shall prove disastrous to the spiritual interests of the former.
जे लक्खणसुमिणपहेलियाउ अक्खाईयाउ य कुतूहलाओ। भेद्ददाणाई णरे पउंजेते, सामण्णस्स महन्तरं खु से।।4।।
4. जो श्रमण गृहस्थ का कौतूहल, लक्षण, स्वप्न और प्रहेलिकादि से मनोरंजन करता है और उससे रंजित होकर मनुष्य (गृहस्थ) दान आदि का प्रयोग करता है। उसकी यह प्रवृत्ति वस्तुतः श्रमणधर्म से बहुत दूर है, अर्थात् पूर्णतया विपरीत है।
4. A saint, who, in his wanderings tickles the curiousity of a householder through prediction, dream analysis etc. and receives alms as a reward from him, falls from the high status of an ascetic.
जे चोलकउवणयणेसु वा वि, आवाहविवाहवधूवरेसु य। जुंजेइ जुज्झेसु य पत्थिवाणं, सामण्णस्स महन्तरं खु से।।5।।
5. जो मुनि शिष्यों/भक्तों के चूडोपनयनादि संस्कारों में तथा वर-वधू के वैवाहिक प्रसंगों में सम्मिलित होता है अथवा अपने सान्निध्य में संस्कारादि करवाता है और राजाओं के साथ युद्ध में भी भाग लेता है। किन्तु, मुनि की इन समस्त क्रियाओं और श्रमण धर्म के बीच बहुत बड़ा अन्तर है। अर्थात् उसकी यह प्रवृत्ति वस्तुतः श्रमणधर्म के पूर्णतया विपरीत है।
5. A saint who participates and conducts celebration of birth, sacred thread ceremony, weddings and the like and accompanies Princes in war-operations has little attribute of a true saint.
जे जीवणहेतु पूयणटा, किंची इहलोकसुहं पउंजे।
अढिविसएसु पयाहिणे से, सामण्णस्स महन्तरं खु से।।6।।
6. जो मनि जीवन-यापन, स्वयं की पूजा-मान्यता और इहलौकिक किंचित् सुखों के लिये पूर्वोक्त कार्य करता है, तो वह इन्द्रियादि विषयों का 352 इसिभासियाई सुत्ताई